हिबाक्शा: इनोउए सोज़ाएमोन, बमबारी के समय उम्र 20 वर्ष नीगाता प्रिफेक्चर के सादो द्वीप के माध्यमिक विद्यालय के बाद मैंने कुमामोतो के नं. 5 हाई स्कूल में दाखिला लिया l जुलाई 1945 को कुमामोतो शहर पर हुई बमबारी के बाद आखिरी बार गाँव देखने की इच्छा लिए मैं सादो द्वीप लौट आया l जब स्कूल ने मुझे सम्पर्क किया, मैं हिरोशिमा के रास्ते कुमामोतो लौटा और हिरोशिमा का हाल देखा l
8अगस्त के भोर के समय, ट्रेन रुक गई और हमें काइताइची स्टेशन पर उतार दिया गया l मैं पटरी के साथ- साथ चलने लगा l दिन चढ़ने पर जब मैं हिरोशिमा स्टेशन पहुँचा तो,मेरी आँखों के सामने बर्बाद शहर था जिसका सब तहस नहस हो चुका था और हवा में जैसे सड़ी हुई मछली की बदबू थी l अणु बमबारी से ग्रसित हिरोशिमा को गुज़रने मात्र से क्या मैं हिबाक्शा कहलाने के योग्य हो जाता हूँ ? अणुबम समस्या अब इतिहास का हिस्सा बनने लगी है l मगर हम सब इसे अभी जी रहे हैं l
बमबारी के पूर्व जीवन
वह सैन्यवाद का समय था, और युद्ध के नाम पर सरकार का सब कुछ सही ठहराने के प्रति मेरे मन में सवाल उठ रहे थे l माध्यमिक स्कूल में सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य विषय था और मैं उसमें सबसे खराब था l सादो द्वीप के देहात का माध्यमिक स्कूल किसी काम का नहीं है l यही सोचकर माध्यमिक स्कूल पास कर मैं तोक्यो आ गया l एक वर्ष तैयारी करने के बाद कुमामोतो के नं. 5 हाई स्कूल में दाखिला मिल पाया l मैंने सोचा कि क्यूशू के लड़कों के साथ पढ़कर देखना चाहिए l
मेरा दाखिला 1944 में हुआ था l युद्ध भी लगभग खत्म होने को था l फिर भी मैंने कुमामोतो जाने की ठानी l पहुँचकर देखा जैसा सोचा था वैसा ही स्कूल था l स्कूल का माहौल मुझे सादा एवं जोशीला लगा l सैन्य माहौल बिलकुल नहीं था l पुराने सिस्टम के तहत हाई स्कूल में किसी प्रकार की कोई बाध्यता नहीं थी l केवल पढ़ाई ही थी l किन्तु अगले साल, यानी 1945 से ही विद्यार्थियों को भी कारखाने में काम करने जाना अनिवार्य हो गया । शस्त्र निर्माण के कारखानों के मजदूरों और कर्मचारियों को युद्ध में भेज दिए जाने के कारण, कोई काम करने वाला ही नहीं रह गया था l इसलिए, काम हमें करना पड़ा l जब मेरी भर्ती हुई, मैं अपने स्कूल में ही रहा l हमारे स्कूल का जिमखाना शस्त्र निर्माण के कारखाने का हिस्सा बन गया था l वहाँ पर हिर्यू नाम के भारी बमवर्षक विमान का निर्माण हो रहा था l पूरा तो नहीं, केवल धड़ का एक हिस्सा ही बनता था l किन्तु यह सब हो रहा था l
1जुलाई 1945 को B29 से हुई कालीन बमबारी से कुमामोतो शहर बुरी तरह से तहस- नहस हो गया l हमारा स्कूल कुमामोतो शहर में होते हुए भी बहिर्भाग में स्थित था l इसलिए 1जुलाई के हवाई हमले का एक भी बम स्कूल में नहीं गिरा, और हमारा स्कूल बिना किसी क्षति के सुरक्षित बच गया l किन्तु हिर्यू लड़ाकू विमान के पुर्ज़े सप्लाई करने वाली फैक्ट्री को हानि पहुँचने के कारण, पुर्ज़ों की सप्लाई बंद हो गई l अब हम कुछ नहीं कर पा रहे थे l मैंने सोचा कि यही समय है गाँव लौटने का और मैं सादो द्वीप लौट गया l बड़ी मुश्किल से मैंने टिकट खरीदी l ट्रेन में चढ़ा, पर बैठने को सीट नहीं मिली l खड़े- खड़े ही यात्रा की l
कुछ समय आराम से बीता किन्तु 5अगस्त को स्कूल से सूचना आ गई l शायद टेलीग्राम था और वापिस लौट आने को लिखा था l मन में सोचते हुए कि अब मैं कभी गाँव नहीं लौट पाऊँगा, 5 अगस्त को मैं वहाँ से निकला l और केवल अपनी इकलौती बहन जो नीगाता के तोकाईची शहर के बालिका हाई स्कूल में अध्यापिका थी, उससे मिल कर निकला l
8 अगस्त: हिरोशिमा में प्रवेश
6 अगस्त को हिरोशिमा में अणु बम गिर चुका था पर मुझे उसकी कोई खबर नहीं थी l अब भी थोड़ा बहुत ऐसा ही है, किन्तु पहले तो सरकार अपने लिए मुश्किलें पैदा करने वाले समाचार बिलकुल नागरिकों को नहीं बताती थी l बिना कुछ जाने मैं 7 अगस्त की सुबह बहन के घर से निकला, और अगले दिन की जब रात 2 बजे काईता इची स्टेशन पहुँचा, तो यात्रियों से कहा गया 'यहाँ से आगे नहीं जा सकते l यात्रियों से अनुरोध है कि यहाँ उतरकर पटरियों पर चलकर जाएँ l ' मैं भी अकेले रात में चुपचाप चलने लगा l ऊंची हील के गेता में अंधेरी रात में चलना बहुत मुश्किल हो रहा था l इसलिए मैंने गेता उतार दिए l नंगे पैर 2 बजे से 5 बजे तक, करीब 3 घंटे चला होऊँगा l रात में वैसे भी जल्दी जल्दी नहीं चल सकते l करीब साढ़े पाँच बजे पता चला कि ' हम हिरोशिमा में हैंl'आस पास देखा तो कुछ भी नहीं था l कहने को तो स्टेशन था, किन्तु इमारत भी तो होनी चाहिए l जहाँ तक मुझे याद है, वहाँ इमारत नहीं थी l शायद कहीं कुछ परखच्चे बचे थे l हैरानी की बात यह थी कि जलने के बाद भी हिरोशिमा में तेल की बदबू नहीं थी l मुझे आश्चर्य हुआ। तेल की नहीं, बल्कि सड़ी हुई मछली की बदबू आ रही थी l हिरोशिमा के बारे में पहली बात यही लगी मुझे l
वहाँ इमारतें इत्यादि कुछ भी नहीं थींl जहाँ तक नज़र जा सकती थी, सब तहस नहस हो चुका था l चल चल के मेरे पैर घिस चुके थे और मैंने कुछ आराम करने की सोची l अपने कोट को बिछाकर, मैं चौकड़ी मार कर बैठ गया l जिस ट्रेन से मैं आया उसमें काफी यात्री थे l किन्तु मुझे यह बिलकुल याद नहीं कि वे सब कहाँ चले गए l धीरे धीरे अंधेरा छंटने लगा और साफ़ नज़र आने लगा l दिन निकलने पर मैं फिर से चलने लगा l ट्राम ट्रेन, अभी की तरह ही, हिरोशिमा स्टेशन से सीधा शहर की ओर जाती , और एक बाईं ओर, 2 लाइनें जाती थीं l नदी के उस पार l मैं बाईं ओर गया l शहर की ओर जाने वाली दाईं ओर की रेल पटरी का रास्ता मुश्किल सा लगा l
पूरा शहर हलकी-सी काली स्याही से रंगा लग रहा था l कंक्रीट के खपच्चे, घर की दीवारें, सब तहस नहस थे l त्सुरुमी पुल लकड़ी का बना था, और उसके आगे शोवा शहर था मियुकी पुल से भी चढ़ाई की ओर होने के कारण मैंने त्सुरुमी पुल ही पार किया था l मुझे अच्छे से याद है कि मैं कहीं ऊंची जगह चढ़ा था l ऊंचाई से देखने पर आकाशवाणी केंद्र, बैंक इत्यादि के मलबे दिखाई दिए l केवल कंक्रीट का ढाँचा ही बचा था l खिड़कियाँ आदि जल जाने या उड़ जाने के कारण अंदर कुछ भी न थाl खिड़कियों के ढांचे भी ऐसे नहीं थे जैसे जल कर बच गए हों ऐसे दिख रहा था मानो किसी तेज़ प्रेशर की वजह से, इमारत के भीतर की न जल पाने वाली छोटी चीज़ें एक ओर इकट्ठी हो गई हों l मैंने सोचा सच में बुरा हाल है l
फिर, मलबे पर हाथ रखते हुए किसी चीज़ के ऊपर से लांघते हुए, एक पैर जब नीचे रखा तो, कुछ गीला सा महसूस हुआ l वह मानव शरीर था, किन्तु उसका निचला भाग नहीं था l मैंने उसकी अंतड़ियों को कुचल दिया था l `हाय राम।' ऐसा एक बार हुआ था l माफ़ कीजिएगा', मन में माफी मांगते हुए, दो-तीन कदम चलने पर, एकदम से आसपास अंधेरा छा गया और कुछ दिखाई देना बंद हो गया l वहाँ बहुत सारी मक्खियाँ थीं l मैंने जैसे ही पैर रखा था, मक्खियाँ भिनभिनाते हुए उडीं l मैं अभी तक उस छुअन को नहीं भूल पाया हूँ l
म्युनिसिपल कोर्पोराशन की इमारत से कुछ दूर एक ट्राम ट्रेन खड़ी थी l अणुबम दो दिन पहले गिरा था l लोहे से बनी ट्रेन का ढाँचा मात्र ही बचा था और वह भी ज़ंग से लाल हो गया था l ट्रेन जलकर काली नहीं हुई थी, बल्कि ज़ंग से लाल हो गई थी l उसके अंदर झाँक कर देखा तो, एक ओर चिथड़ों की तरह पड़े मृतकों के शरीर का ढेर लगा हुआ था l और एक अजीब बात थी, ट्राम ट्रेन के फर्श और पटरी के बीच बहुत सारे लोग थे l कहने की आवश्यकता नहीं कि वे मृत शरीर थे l सम्भवतः वे आग की लपटों में आ गए थे और गर्मी सहन न कर पाने के कारण ट्रेन के नीचे घुसने की कोशिश करते हुए जल कर मर गए होंगे l
कोई स्टेशन की ओर
मुझे याद नहीं मैंने कितने पुल पार किये होंगे l बस मैं चलता ही जा रहा था l तभी एक नदी दिखाई दी l नदी के वहाँ मुझे समझ नहीं आ रहा था कि किस ओर से नदी पार की जा सकती है l असमंजस में मैं वहाँ घूमने लगा l करते करते दोपहर हो आई थी l नदी में ज्वार भाटा आया। नदी का बहाव ऊपर की ओर हुआ और लाशें ऊपर की ओर बह कर जाने लगीं l (मुझे हिरोशिमा के भू-भाग के विषय में कोई जानकारी नहीं थी ) 'अरे ! बहाव तो इस ओर था l शायद मुझसे गलती हो गई l ' सोचकर मैं फिर उलटी तरफ जाने लगा। आखिर मुझे हिरोशिमा शहर से निकलने में 15 घंटे लग गए l
मैं कोई स्टेशन पहुँचा l उस समय पता नहीं था कि यहाँ कोई स्टेशन है l बाद में किसी ने मुझे बताया। कोई इमारत तो वहाँ थी नहीं l बस एक मैदान था और उसके बगल में पहाड़ था l उस पहाड़ के पेड़, वे पेड़ जो हिरोशिमा शहर की ओर थे, उनके पत्ते लगभग सारे जल गए थे l उन पेड़ों के नीचे लोग सोए हुए थे l मुझे लगा वे लोग थक कर सो गए हैं, किन्तु वे हिबाक्शा थे l मैं खोया सा खड़ा रहा l आमतौर पर लोग , 'ऐसा हुआ', 'वैसा हुआ' ' आपके शहर ठीक है क्या ' इत्यादि कहते हैं l किन्तु यहाँ ऐसा कुछ नहीं हुआ l सब चुप थे l उन लोगों के लिए वहाँ खड़ा रहना ही काफी था l
शाम 5 बजे की बात होगी l अभी भी हिरोशिमा में उजाला था l ट्रेन उलटे चलते हुए स्टेशन में आई l सब चुप- चाप ट्रेन में चढ़ने लगे l हिबाक्शा भी साथ चढ़े l मेरे बगल में बच्चे को पीठ पर लादे एक स्त्री खड़ी थी l उसका चेहरा फीका था l कंधे से बाँह तक के पूरे हिस्से पर गहरी चोट लगी हुई थी और लाल लाल माँस दिख रहा था। जहाँ से चमड़ी निकल आई थी वहाँ से पीले रंग की पस बह रही थी।l हम सटकर खड़े थे और मेरा शरीर उस स्त्री को छू रहा था , किन्तु उस हाल में, वह छुअन मुझे बुरी लगी हो, ऐसा नहीं हुआ l फिर मैंने उससे कहा कि, 'आपका बच्चा अब नहीं रहा ', तो उसने जवाब दिया 'मुझे पता है l' कोई चारा नहीं है , इसलिए अब गाँव लौट रही हूँ l' उस समय ऐसे हाल थे l अमूमन, दर्द में लोग कराहते हैं, कुछ करते हैं l इतना दर्द होता है कि छूने भर से उछल पड़े l पर अभी सब सुन्न हैं l दूसरे किसी आघात (विस्फोट) में शायद ऐसा हाल न हो l मैंने सोचा, परमाणु बम, जब अचानक गिरता है तो ऐसा हाल होता है l
कुमामोतो में वापसी
इवाकुनी से दोबारा ट्रेन में चढ़ा। पहले शिमोनोसेकी, फिर मोजी तक गया l मोजी पर फिर से ट्रेन रोक दी गई l मोजी स्टेशन पर सैन्य पुलिस तैनात थी और वह मुझे स्टेशन बिल्डिंग के अंदर ले गई l उन्होंने पूछा 'तुम कहाँ से आए हो 'l मैंने सब हाल बताया और कहा कि कुमामोतो के अपने स्कूल लौट रहा हूँ l यह सुनने भर की देर थी कि वे मुझसे कुरेद कुरेद कर हिरोशिमा का हाल पूछने लगे l मुझे जितना याद था बता दिया l अणु बमबारी हुए दो दिन बीते हुए थे lशायद अखबार में इतनी ही खबर आई थी कि विशेष प्रकार का बम गिराया गया है। किन्तु हानि का ब्यौरा सेना देती है, इसलिए मोजी की पुलिस को ज्यादा कुछ पता नहीं था l और उनके विस्तार से पूछने का यही कारण था l
9अगस्त की सुबह 2-3 बजे मोजी स्टेशन पर मेरे साथ यह सब हुआ l उसके बाद मैं हाकाता गया औए कामी कुमामोतो पहुँचते पहुँचते 11 बज गए थे l जब मैं सड़क पर चल रहा था, असल में मैं कुमामोतो की ओर से आ रहा था तो मेरी बाईं ओर कुरुमे और नागासाकी थे l उस ओर से बहुत भयंकर धां कर आवाज़ हुई l मुझे बाद में महसूस हुआ कि वह ज़रूर नागासाकी के अणु बम की आवाज़ होगी l
बाद में पता चला कि गेस्ट हाउस लौट कर सामान वामान छोड़ मैं वैसे ही सो गया था l मैंने किसी से हिरोशिमा के बारे में बात नहीं की l केवल गेस्ट हाउस के मित्रों से ही बात की थी, किन्तु लगभग एक सप्ताह बीतने के बाद, वह अणु बम था, यह बात जाँच कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद ही सबको पता चली l फिर अफवाह उड़ने लगी कि अब तो हिरोशिमा की भूमि बंजर हो गई, वहाँ की औरतें बच्चे पैदा नहीं कर सकतीं l उस हिरोशिमा को मैंने सुबह से शाम, पूरा एक दिन लगाकर पार किया था l मुझे चिंता होने लगी कि मेरे शरीर पर उसका क्या असर हुआ होगा l मैं मन में तो एसा सोच रहा था किन्तु, भले ही मित्र हो या कोई और, किसी से भी इस बारे में बात ज़्यादा नहीं की l
युद्ध समाप्त होने पर
जब युद्ध समाप्त हुआ, मन के अंदर बहुत खुशी हुई l जैसा करोगे वैसा भरोगे l हमारे सभी साथी ऐसा ही सोचते थे l यह बेतुकापन 15 साल चला था l ऊपर से हिरोशिमा, नागासाकी का यह हाल हो गया था l बिलकुल दयनीय स्थिति थी l मेरे लिए केवल इतना ही काफी था कि अब पढ़ाई कर सकते थे l
15 अगस्त को सब स्कूल के सभा गृह में एकत्रित हुए और सम्राट का भाषण सुना l भाषण सुनकर रोने बिलखने वाला कोई नहीं था l सभी लोग चुपचाप एक साथ सभागृह से बाहर निकले l एक अध्यापक ने कहा, ' अब से अंग्रेज़ी की पढ़ाई होगी l जिन्हें रुचि है वे आ सकते हैं l ' उसी क्षण की बात है l 30 लोगों के उस कमरे में विद्यार्थी ठुस- ठुस कर भर गए और लेक्चर सुना l उस समय की खुशी शब्दों में बयान नहीं कर सकता l यह सोचकर कि किसी से नहीं हारूँगा, मैंने बहुत मेहनत की l
अणु बम का प्रभाव
25 वर्ष की उम्र में मैंने विवाह किया l पहले बच्चे का तीसरे महीने में गर्भपात हो गया l 1952 में जो बच्चा पैदा हुआ वह मरा हुआ पैदा हुआ l 10 महीने 10 दिन पर पैदा हुआ था किन्तु मृत जन्म था l जब बार बार ऐसा हुआ तो लगने लगा कि इन सब का हिरोशिमा से कुछ नाता तो नहीं है l 55 वर्ष की उम्र में मुझे दिल का दौरा पड़ा l मैं किसी तरह बाल बाल बचा था l बाद में लगा कि कहीं इसका भी अणु बम से कुछ नाता न हो l
66 वर्ष की उम्र में मुझे हिबाक्शा स्वास्थ्य डायरी मिली l मैं उस समय हिरोशिमा से गुज़रा तो ज़रूर था, किन्तु गुज़रने भर से स्वास्थ्य डायरी पकड़ा दी जाएगी, ऐसा कभी नहीं सोचा था l उस समय स्कूल में एक सहपाठी पत्रिका थी l सभी को लगभग 200 शब्दों में नं. 5 हाई स्कूल के अनुभव के बारे में लिखना था l मैंने हिरोशिमा के बारे में लिखा l जब मेरे मित्रों ने वे 200 शब्द पढ़े, उन्होंने कहा, ' तुम्हारे साथ यह सब हुआ ! तुम्हें तुरंत स्वास्थ्य डायरी के लिए आवेदन करना चाहिए l ' इसलिए मैं तोक्यो म्युनिसिपैलिटी ऑफिस गया और आवेदन किया l तब यह नियम था कि स्वास्थ्य डायरी के आवेदन के लिए दो गवाह ज़रूर होने चाहिए l किन्तु मैं गवाह कहाँ से लाता l मैं नं. 5 हाई स्कूल का छात्र था और मैं अकेले यात्रा कर रहा था l इसलिए मित्रों के कहने पर मैं यहाँ आया हूँ l ' तोक्यो म्युनिसिपैलिटी ऑफिस के कर्मचारी को जब यह बताया तो उसने मेरी बात ध्यान से सुनी l उसके कहा, ' इनोउए जी, हिरोशिमा के बारे में आपको जो कुछ भी याद है, विस्तार से लिखकर जमा कीजिए l' कुछ ख़ास नहीं लिख पाया था, किन्तु जमा कर दिया l आवेदन के अगले ही दिन स्वास्थ्य डायरी मुझे इशू हो गई l
डायरी तो मुझे मिल गई थी, लेकिन मैं अब भी यही सोचता हूँ कि क्या मैं सच में एक हिबाक्शा हूँ ? यह भी सच है कि मैं थोड़ा बहुत तो रेडिएशन के सम्पर्क में आया होऊँगा lमैं सच में सोचता हूँ कि क्या मैं हिबाक्शा कहलाने लायक हूँ l
अणुबम उन्मूलन के लिए कार्यरत
जब भी गर्मियाँ आती हैं, मुझे हिरोशिमा की याद आती है l इसलिए जैसे- जैसे उम्र बढ़ती गई, यह बात मेरे मन में गहराती गई कि मुझे हिरोशिमा के लिए कुछ करना है l हिरोशिमा के उन भयावह हालात को लोगों तक पहुँचाना है l नागासाकी के भी l परमाणु अस्त्र जो हैं, बस एक दिन कोई बटन दबा देगा और बस सब तहस नहस l मैं सोचता हूँ, क्या दोबारा ऐसा होना चाहिए ? जब भी अवसर मिलता है, मैं अपने अनुभव लिखता हूँ l कहे जाने पर गवाही भी देता हूँ l
आजकल तो अणुबम से भी अधिक शक्तिशाली चीज़े हैं, अगर छोटी सी भी गलती हो जाती है तो कोई दूसरा मौका भी नहीं मिलेगा l राजनेता या दूसरे लोग कितना भी परमाणु की समस्या पर बोलते रहें, किन्तु, परमाणु शस्त्रों के कारण ही युद्ध को रोका जा सकता है, इस दावे के सामने लोग हार जाते हैं। इस बारे में क्या कर सकते हैं । मुझे लगता है आखिर हम जन साधारण को ही आवाज़ उठानी होगी, उसे सशक्त बना कर दुनिया के हर कोने में अपनी बात पहुँचानी होगी l केवल जापान में ही नहीं, विश्व भर में जापान के परमाणु शस्त्र उन्मूलन के बारे में बताना होगा l आखिर जापान ही एक ऐसा देश है जिसने अणु बम की त्रासदी को झेला है l यह अजीब बात है कि अणु बम की त्रासदी को झेलने वाला देश ही परमाणु हथियार निषेध संधि का समर्थन नहीं कर रहा है l
73 वर्ष बीत गए हैं l अणुबम अब इतिहास का हिस्सा बनने लगा है l मगर यह इतिहास नहीं है l हम सब इसे अभी जी रहे हैं l युवा पीढ़ी में कुछ लोग तो हैं जो इसके बारे में गंभीरता से सोचते हैं, लेकिन ज्यादातर लोग नहीं सोचते l अभी हम कैसे एक आरामदायक शांत जीवन जी पा रहे हैं, उसका सच, शांति के पीछे के सच जब तक नहीं समझ पाएँगे, तब तक हम वास्तव में शांति कायम नहीं कर सकते l मुझे इसी बात की चिंता है l
अनुवाद :डॉ.अनुश्री
अनुवाद निरीक्षण: डॉ आकिरा ताकाहाशी
अनुवाद समन्वय : NET-GTAS (Network of Translators for the Globalization of the Testimonies of Atomic Bomb Survivors)
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