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एत्सुको हीरोता (HIROTA Etsuko)
लिंग महिला  बमबारी के समय उम्र 3  
रिकार्डिंग की तिथि 2003.10.9  रिकार्डिंग के समय की उम्र 61 
बमबारी के समय स्थिति हिरोशिमा(अणु-बम विस्फोट स्थल से दूरी:0.8km) 
Hall site अणु-बमबारी पीड़ितों के लिये हिरोशिमा नेशनल पीस मेमोरियल हॉल 
Dubbed in Hindi/
With Hindi subtitles
With Hindi subtitles 
उस वक्त एत्सुको हीरोता की उम्र ३ साल की थी। परमाणु बम विस्फोट स्थल से 0.8 किमी दूर तकाजो माची में हादसे की चपेट में आईं । कहती हैं कि जले हुए शरीर को नदी में डुबकियाँ लेकर ठंडा किया। परमाणु  बम की वजह से होने वाले रोगों का प्रभाव आज भी शरीर पर है।

【परमाणु विस्फोट से पहले  घर एवं  परिवार ।】
हमारा घर हिरोशिमा प्रान्त के हिरोशिमा शहर के तकाजो माची में था, पर मकान नंबर याद नहीं। हेईवाकीनेन शांति स्मारक पार्क से ठीक ८०० मीटर की दूरी पर था शायद। आइओई पुल को पार करते ही अंदर की तरफ तकाजो माची था। शायद आज माची का नाम बदल गया है, लेकिन मैं वहीं रहती थी । पिताजी, माँ, दादी और तीन बड़ी बहनों को मिलाकर 7 लोगों का परिवार था।

【उस समय का खानदानी व्यापार।】
पिता जी का एक रेस्टोरेंट था। उस दिन काम करनेवालों को बमबारी से बचाने के लिए सुरक्षित स्थानों पर जाने देना है, पिता जी यह कहकर घर से रेस्टोरेंट के लिए निकले तो रास्ते में ही विस्फोट की चपेट में आ गए और उस दिन से उनका कभी कुछ पता नहीं चला। दादी और बड़ी बहन (मंझली) अकी तहसील के फुचू नामक स्थान पर सुरक्षा के लिए घर छोड़कर जा चुकी थीं।

【विस्फोट का क्षण। ३ साल की उम्र में विस्फोट का सामना।】
6 अगस्त के दिन मैं, माँ और पिताजी घर पर थे। पिताजी रेस्टोरेंट के लिए निकले। उसके तुरंत बाद विस्फोट हो गया । मैं उस समय तीन साल की थी। शौचालय से निकली और बायीं तरफ मुखातिब हुई थी , बस इतना याद है । उसके बाद क्या हुआ याद नहीं। माँ बाहर ड्योढ़ी पर रखे सोफे पर लेटकर आराम कर रही थीं। कैमरे के फ़्लैश जैसी तेज़ रोशनी हुई, माँ ड्योढ़ी से आठ तातामि वाले कमरे में जाने से पहले ही गिर आई छत के नीचे दब गईं। माँ ने बाद में कहा कि उन्होंने मुझे सब से बड़ी बहन के कमरे में भाग जाते हुए देखा, जो मुख्य मकान से लगे हुए दूसरे छोटे मकान में था।बड़ी बहन अपने कमरे में थी। मुझे बताया गया कि वह बहन बाद में मुझे पीठ पर लादे हुए आइओई पुल के नीचे नदी के पानी में खड़ी हुई मिली थी। इस बीच माँ घर की छत के नीचे दबी हुई थीं और बाहर नहीं निकल पा रही थीं। जहाँ से हलकी सी रोशनी दिखाई पड़ रही थी, उन्होंने वहाँ तक रेंगते हुए जाकर अपना एक हाथ बाहर निकाला। पड़ोसियों ने लकड़ियाँ हटा दीं। उन्होंने कहा कि और बड़ा छेद नहीं हो सकता, आप बस यहीं से निकलें। माँ बाहर आईं। पूरा शरीर ज़ख़्मी हो गया था। माँ के सिर पर भी चोट लगी थी। 15 सेंटिमीटर लंबी और मोटी-सी कील पैर के पंजे से छेदकर ऊपर तक निकल आई थी। फिर भी बच्चों को ढूँढ़ना था। शरीर के खून को धोने के लिए वे आइओई पुल के नीचे गईं। उन्होंने पानी में खड़े हुए हम लोगों को देखा। बड़ी बहन ने मुझे माँ को समर्पित किया। उस समय माँ, बड़ी बहन और मैं, सब के दोनों हाथ और पैर झुलस गए थे। इसलिए मैं माँ की गोद में आते हुए दर्द के मारे रो पड़ी थी, ऐसा बाद में मैंने सुना।

【विस्फोट के तुरंत बाद की दुरवस्था। माँ के जबानी।】
पहले तो नदी का पानी हलके भूरे रंग में बदला और देखते ही देखते बिल्कुल खून की नदी के समान लाल रंग में बदल गया। कहने को तो वह पानी था, लेकिन पानी बॉथटब के हल्के गरम पानी के समान लग रहा था। मरे हुए , घायल या जले हुए, सभी लोग उसी पानी में थे। पानी में तैरती लाशों को नदी किनारे गड्ढा खोदकर उसमें डाल दिया जाता और उसपर तेल छिड़ककर आग लगा दी जाती थी। आसपास का यही हाल था। आसपास चल रहे सब लोग पूरी तरह निर्वस्त्र थे और स्त्री-पुरुष का बिल्कुल भेद नहीं चलता। जमीन पर पड़े हुए लोग माँ के पैर खींच-खींचके "पानी पानी ” की गुहार लगा रहे थे। लेकिन पानी पीने से मौत हो सकती है, यह सोचकर • "बहुत जल्द सैनिक मदद करने आएँगे, इसलिए कुछ देर और धैर्य रखिए ”, ऐसा कहकर माँ वहाँ से हटतीं। उस समय आइओई पुल के पास नरक जैसा दृश्य था, आसपास कुछ भी नहीं , बस जले हुए मैदान थे। हर तरफ लाशें जल रही थीं। कहते हैं कि कुछ ऐसे लोगों को भी उसी गड्ढे में डालकर जला दिया गया जो अभी जिंदा थे, लेकिन जिनके इलाज से बचने की संभावना बिल्कुल नहीं थी।

【परमाणु विस्फोट के बाद का इलाज ।】
कमरे में लिटाने के बाद एक दिन भी न हुआ हो तब से कीड़े घुमड़ने लगे और मक्खियाँ भिनभिनाने लगीं और फिर बहुत बदबू होती थी । बाहर आँगन में भी दोनों की दुर्गंध से टिकना मुश्किल था। दादी और बहनों को यह उम्मीद नहीं थी कि हम ठीक हो जाएँगी। दादी वगैरह के द्वारा हर संभव इलाज के बावजूद फायदा नहीं हो रहा था , लगता था अब मौत करीब है। लेकिन पेनिसिलिन की सूई लगने के बाद धीरे धीरे ठीक हो गई। जलने का ज़ख़्म भी केलॉइड में तब्दील नहीं हुआ। हाथों और पैरों में भी केलॉइड नहीं है। इस हद तक ठीक हो गई कि जलने के निशान के तौर पर केवल चमड़े के रंग की हलकी सी भिन्नता है बस। बाकी कुछ नहीं। माँ को भी केलॉइड नहीं था। पैसों का ख़त्म होना और बीमारी का ठीक होना ऐसा लगा कि एक साथ ही  हुआ। पिताजी ने मेरे नाम पर जो पैसे बचाए थे उससे इलाज संभव हो पाया। ज़ख़्म के निशान भी नहीं रहे। अगर मैं अपनी ओर से नहीं बताती, तो कोई मुझे परमाणु विस्फोट का शिकार नहीं समझता। मेरी त्वचा का रंग साँवला और शरीर कमज़ोर है, मगर मैं परमाणु बम के पीड़ितों जैसी नहीं दिखती। मैं बच पाई। यह सिर्फ़ मेरी माँ और दादी की कृपा है और मैं हमेशा उनकी आभारी रहूँगी।

【परमाणु विस्फोट से पैदा हुए रोगों के लक्षण।】
सिर हिलाने भर से काफी बाल गिरते थे। और कंघी करो तो बालों का गुच्छा कंघी पर चिपककर अलग हो जाता था। जितनी बार कंघी करो उतनी बार बाल गिरते थे और सिर की त्वचा साफ दिखाई देने लगी थी। इस बच्ची के अब शायद बाल नहीं उगेंगे ऐसा सोचकर मुझे टोपी पहनाई जाती थी। मुझे वह टोपी बिल्कुल नापसंद होने के कारण हमेशा उतार देती थी । प्राथमिक विद्यालय में जाने से कुछ एक साल पहले से मेरे बाल थोड़े थोड़े उगना शुरू हुए। प्राथमिक विद्यालय में प्रवेश के समय किसी तरह मेरे बाल उग आए ओर मेरा दाखिला भी हो गया। उस वक्त माँ के भी बाल झड़ रहे थे, इसलिए वे चीड़ के पत्तों की नोक से गुच्छा बनाकर उससे सिर पर ठोंकें मारती रहती थीं, ताकि बाल उग आएँ। रोमकूप नहीं खुलेंगे तो बाल नहीं आएँगे, यह सोचकर चीड़   के वे नुकीले पत्ते दिन -रात अपने सिर पर लगाती थीं। पूरा सिर खून खून हो जाता था।

【माँ की मृत्यु।】
उनको गुज़रे हुए आज १६ साल हो गए हैं। माँ पहले से ही वावाल्वुलर बीमारी, एंजिना पिक्टोरिस, मायोकार्डियल इंफार्क्शन जैसे हृदय रोग से जूझ रही थीं। और साथ ही लिवर जैसी सारी अँतड़ियाँ घायल हो गई थीं। आखिर वे दिल की बीमारी के कारण चल बसीं।
【माँ के द्वारा उस घटना का विवरण।】
माँ लोगों के सामने जाकर अपने अनुभव के बारे में कहने लगीं कि परमानु बम क्या चीज है, डर लगा, लोग जल-जलकर मर जाते थे, इत्यादि इत्यादि। मैं छोटी होने की वजह से ज़्यादा कुछ मदद तो नहीं कर पाती थी, लेकिन जब भी मौका मिला तब माँ की बातें सुनने के लिए तरह तरह की बैठकों में जाती थी। मैं माँ से यह कहकर कि मुझे उस घटना के बारे में जानना है , कभी कभी माँ से उस विस्फोट की कहानी सुनती थी। स्कूल  के दिनों मैं काफी कमज़ोर थी, सीधा बैठकर पढ़ाई भी नहीं कर पाती थी। हर वक्त मेज़ पर झुकी रहती थी । एक बार अस्पताल से पूरे शरीर के विस्तृत परीक्षण करवाने का सुझाव मिला तो करवाके देखा। परमाणु विस्फोट की बात भी उठी । क्यों परमाणु बम गिराया गया होगा। परमाणु विस्फोट के कारण बीमार होने पर भी शादी कर सकती हूँ या नहीं, या फिर मैं लंबा जी पाऊँगी क्या? वगैरह । उस दौरान माँ से परमाणु बम के बारे में अधिक बातें करने लगी । परमाणु बम क्या है और उससे पीड़ित लोगों की क्या हालत है । और साथ ही माँ के अनुभव को सुनकर, तभी से मैं भी इस बमबारी पीड़ित लोगों के संघटन का एक हिस्सा बनकर आंदोलन में सक्रियता से काम कर रही हूँ। माँ कहती थीं," सच बोलूँ तो उस समय की बातें करना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है, जब भी वह वक्त याद आता है तो आँसू निकल आते हैं और कुछ भी बोला नहीं जाता।” लेकिन अगर तुम्हें पता होगा तो शायद तुम भविष्य में इस मुहीम को आगे ले कर चलोगी। आगे आने वाले वक्त में काम आएगा, ऐसा वे बोलती थीं । मिडल स्कूल पास करके 15-16 साल की उम्र में मुझे लगने लगा कि शायद अब मैं कभी शादी नहीं कर पाऊँगी। क्योंकि जैसे ही किसी को यह पता चलेगा कि मैं परमाणु विस्फोट पीड़ित हूँ , तो सब मना ही करेंगे। और अगर शादी हुई भी, तो अगर बच्चे हुए तो उनकी ऊँगली , आँख या कान नहीं होगा वगैरह कहा जाता था। यह सुनती थी तो मुझे लगता था कि अब मैं कभी शादी नहीं कर सकूँगी। माँ को लगता था कि एक तो वे खुद भी कमज़ोर हैं और बेटी भी, ऊपर से पिता के न होने की वजह से बच्चे बिगड़ न जाएँ यह सोचकर मैं जब आठ साल की थी, माँ शिष्टता और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए  हिरोशिमा में जापानी पारंपरिक नृत्य सिखाने लगीं। मुझे नृत्य और संगीत अधिक प्रिय होने के कारण मैं नृत्य सीखने में मग्न हो गई। आज भी सीख रही हूँ।

【बमबारी के कारण बाधाएँ।】
जलन बाईं तरफ से थी, इसलिए बाएँ हाथ और पैर की त्वचा का रंग थोड़ा सा अलग है। दाईं तरफ भी जला था, किन्तु उसकी तुलना में बाईं तरफ की त्वचा में धब्बे हैं। पेट में नाभि के चारों ओर 3 या 4 जगहों पर केलॉइड के निशान हैं। लेकिन वह बीभत्स प्रकार के केलॉइड नहीं है और जब तक कपड़े पहने हूँ   तब तक उसके होने का पता भी नहीं चलता । चेहरा भी बाईं ओर मुड़ा था, पर चेहरे की त्वचा में ज़्यादा फ़र्क नहीं है । त्वचा हमेशा धूम्र थी, एक बार भी गोरी नहीं हुई।

【परमाणु विस्फोट पीड़ित होने के कारण शादी में हुई मुश्किलें ।】
पति के पिता, बहनें , भाई और रिश्तेदार सभी यह कहकर मना करते थे, "लड़की और उसके माता पिता सब परमाणु विस्फोट पीड़ित हैं। ऐसी लड़की से शादी न भी करो। आसपास कितनी ही सेहतमंद लड़कियाँ मौजूद हैं ” इस तरह का विरोध भी हुआ। पड़ोस के ताऊ ताई भी यह बोलते थे, "माता-पिता भी और भाई भी इस शादी के खिलाफ हैं। ऐसे में उन सब के खिलाफ जाके क्या तुम यह शादी कर पाओगे ?” लेकिन मेरे पति ने कहा "मैं ज़रूर करूँगा, विरोध के बावजूद मैं यह शादी करूँगा ” ऐसे मेरी शादी हुई, लेकिन बच्चा पैदा होने तक पारिवारिक लेख में मेरा नाम शामिल ही नहीं किया गया था।

【परमाणु विस्फोट के प्रति नफ़रत।】
मैं यह नहीं चाहती कि फिर कभी भी कहीं भी परमाणु बम गिराया जाए । चाहती हूँ कि फिर दुबारा कोई हिरोशिमा और नागासाकी न बने। मैं बस यही दुआ करती हूँ कि पूरे विश्व में अमन रहे और जापान में भी शांति और अमन बना रहे । चाहती हूँ कि युद्ध दुबारा कभी नहीं हो । हम हिरोशिमा और नागासाकी के बमबारी पीड़ित लोग नहीं चाहते कि हमारी तरह इस दुर्भाग्य का फिर से कोई सामना करे। हम हिरोशिमा और नागासाकी के लोगों की तरह बमबारी की पीड़ा का बोझ उठाकर जीनेवाले कोई दूसरे न हों। हम अपने पोतों और बच्चों से बस यही उम्मीद करते हैं कि फिर कभी भी परमाणु अस्त्र का उपयोग न हो और फिर कभी युद्ध न हो। पूरी दुनिया में शांति चाहते हैं।

 

अनुवादक:मोईन मोखतार
पर्यवेक्षक:आकीरा ताकाहाशी
अनुवाद का समन्वयक:NET-GTAS (Network of Translators for the Globalization of the Testimonies of Atomic Bomb Survivors) 
  

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