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ताकाको कोतानी  (KOTANI Takako)
लिंग महिला  बमबारी के समय उम्र 6  
रिकार्डिंग की तिथि 2012.10.10  रिकार्डिंग के समय की उम्र 73 
बमबारी के समय स्थिति हिरोशिमा(अणु-बम विस्फोट स्थल से दूरी:2.5km) 
Hall site अणु-बमबारी पीड़ितों के लिये हिरोशिमा नेशनल पीस मेमोरियल हॉल 
Dubbed in Hindi/
With Hindi subtitles
With Hindi subtitles 
बमबारी के समय ताकाको कोतानी जी की उम्र 6 वर्ष थी l वे ग्राउन्ड ज़ीरो से लगभग 2.5 कि.मी. दूर स्थित मिनामी नगर में थीं l उनके 4 वर्षीय छोटे भाई का पूरा शरीर झुलस गया था l बमबारी के चौथे दिन की सुबह ' हवाई जहाज डरावना है l पानी कितना स्वादिष्ट है l ' कहते हुए उसने दम तोड़ दिया l ' पानी पीने की इच्छा लिए मर जाने वाले व्यक्तियों की बात को अन्य लोगों तक पहुँचाने के लिए तुम्हें अच्छी सेहत मिली है l ' बड़ी बहन के इन शब्दों से हिम्मत पाकर "ताकाको कोतानी जी पेट बोली के द्वारा अपने अणु बमबारी के अनुभव बच्चों को बताती हैं l

【 बमबारी से पूर्व जीवन 】
पिताजी के जल सेना में होने के कारण हम लोग कुरे शहर में रहते थे l मेरा जन्म वहीं हुआ और जब तक मैं 5 वर्ष की हुई, हम कुरे में रहे l जब मैं 5 वर्ष की थी, तब पिताजी युद्ध में गए l वहाँ वे बीमार पड़ गए एवं लौटने के बाद उनकी मृत्यु हो गई l पिताजी हिरोशिमा शहर से थे और दादी वहाँ अकेली रहती थीं l परिवार सहित हम वहीं आ गए l यह मार्च 1945 की बात थी l जब मैं कुरे में थी, तब मैं चौबीस घंटे कपड़े पहनकर तैयार रहती थी और हमेशा अपने पास एक सुरक्षा टोपी भी रखती थी l क्योंकि रात को भी आग के गोले गिराये जाते थे, और हमें तुरंत शेल्टर में घुस जाना पड़ता था l ऐसा लगता था कि हम लोग सचमुच युद्ध जी रहे हैं। किन्तु हिरोशिमा शहर आने के बाद वहाँ का शांत जीवन देखकर मैं हैरान रह गई l

【 6 अगस्त 】
मौसम बहुत अच्छा था और आसमान भी साफ नीला था। दोपहर 12 बजे बमबारी से बचने के लिए हमें हिरोशिमा से बाहर एक गाँव जाना था। सब सामान तैयार था। ट्रक 12 बजे आना था l तब तक हम भाई बहन पीछे की नदी में तैरने चले गए l तभी हवाई जहाज की आवाज़ आई l सभी आसमान की ओर देखकर आपस में बात करने लगे कि B 29 है क्या l तभी हवाई जहाज जल्दी ही कहीं चला गया l हवाई बमबारी का अलार्म भी नहीं बजा, इसलिए हमने सोचा कि चलो सब ठीक ही है , और हम फिर से दौड़ पड़े l मुझे प्यास लगी थी l इसलिए मैं अकेले ही घर लौट गई l रसोईघर में जब मैं पानी पी रही थी, शीशे की खिड़की एकदम से चमकी, साथ में ' धड़ाम ' कर बहुत तेज़ आवाज़ हुई, और मैं टूटे घर के नीचे दब गई l

पता नहीं मैं कितनी देर उस हाल में रही l माँ बड़ी बेचैनी से बच्चों के नाम पुकार रही थीं l तब आख़िरकार, ' माँ ', मेरी  आवाज़ निकली l मेरी आवाज़ सुनकर माँ दौड़ी आईं और उन्होंने मुझे बाहर निकाला। मैं अभी पहली कक्षा में थी l इसलिए मेरा कद छोटा था , गिरे हुए खंभों और दीवारों के बीच में होने के कारण मुझे केवल थोड़ी-सी खरोंचें आईं और मैं बच गई l जब माँ ने पूछा, 'दूसरे भाई बहन कहाँ हैं ?', मैंने कहा, ' नदी में तैरने गए थे l'  माँ ने मुझे मलबे के ऊपर बिठाया और कहा, ' यहाँ से हिलना नहीं ' और वे दूसरे भाई बहनों को ढूँढ़ने चली गईं l आसपास का हाल बहुत बुरा था l इतना कि कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ है l

उस समय तक हिरोशिमा शहर आग का समुद्र बन चुका था l सभी लोगों के शरीर पर जलने के घाव थे, पहने हुए कपड़े भी पूरे जल गए थे, और चमड़ी लटक आई थी l पीछे के मियुकी पुल को पार कर घर के सामने से होते हुए  घर के पास नदी चौड़ी होने के कारण आग की चिन्गारियाँ घर तक नहीं पहुँची थीं। इसीलिए हम लोग बस किसी तरह बच पाए l बचाव के लिए सब लोग हमारे घर के सामने आ गए और ' पानी,पानी ' कहकर पानी माँगने लगे l आग बुझाने के लिए रखे पानी के हौज़ में वे लोग सिर डुबोने लगे और इस तरह एक के ऊपर एक ढेर होकर सब के सब मरने लगे l मैं स्तब्ध खड़ी देख रही थी l ' पानी, पानी ' कहकर, लोगों ने  मेरी ओर हाथ बढ़ाया, पर मैं बहुत छोटी थी और मैं कुछ नहीं कर सकती थी l

मुझे कुछ समझ नहीं आया कि आखिर क्या हुआ l मैं उस दृश्य को केवल देखती रही थी l तभी माँ बड़ी बहन और भाई को ढूँढ़ लाईं l बड़ी बहन के पूरे शरीर पर जलने के घाव थे l घर के पीछे की ओर होने के कारण बड़े भाई पर जलने के निशान नहीं थे, किन्तु शीशे के छोटे- बड़े टुकड़े चुभ जाने से सिर और माथा खून से लथपथ हो गए थे l माँ ने दोनों को मलबे के ऊपर लेटाया और मुझसे ' इनका ध्यान रखना ' कहकर छोटे भाई को ढूँढ़ने चली गईं l उस समय दादी भी लौट आईं l उनके शरीर पर जलने के घाव थे l बमबारी के समय वे पड़ोसियों से बात कर रही थीं l

अणु बमबारी की विस्फोटक हवा छोटे भाई को एकदम दूर उड़ा ले गई थी, किन्तु माँ आखिरकार उसे ढूँढ़कर ले आईं l छोटे भाई का चेहरा बिल्कुल काला हो गया था l इसलिए माँ ने जब अपने कपड़ों से भाई का चेहरा पोंछा तो, चेहरे की चमड़ी उतर कर लटकने लगी l वह डरावना दृश्य मैं कभी नहीं भूल सकती l बेहोश पड़े भाई ने बमबारी के चौथे दिन, 10 अगस्त को आँखें खोलीं l माँ ने उसे और कुछ नहीं तो कम से कम पानी पिलाने का सोचा l जब पानी पिलाया तो भाई ने सिर्फ एक घूँट पिया और  ' माँ, हवाई जहाज डरावना है l पानी कितना स्वादिष्ट है l ' कहते हुए उसने दम तोड़ दिया l गर्मी के दिन थे। मृत देह शीघ्र खराब हो सकती है l इसलिए माँ ने मलबा इकट्ठा कर चिता बनाई l उसके ऊपर भाई को लेटाया और अपने हाथ से उसका अंतिम संस्कार किया l  मैं बिना हले डुले माँ के पास खड़ी सब कुछ देख रही थी l माँ ने चुपचाप अंतिम संस्कार किया और अस्थियों को चुनकर ज़मीन में दफन किया l मुझे लगता है कि अकेले में माँ खूब रोई होंगी । उन्हें बहुत दुःख हुआ होगा l

【 बमबारी के समय के भयानक हालात 】
मैंने देखा, एक बढ़ई कीलों को लेकर काम कर रहे थे l बमबारी से हुई तेज़ हवा से सारी कीलें उनके शरीर में चुभ गईं और वे खून से लथपथ हो गए l वे कराह रहे थे, ' हाय, बहुत दर्द हो रहा है l इन कीलों को निकालो ' वे एक बढ़ई थे। वे मेरे बिलकुल पास में थे। बहुत तेज़ आँधी-सी हवा चली थी l कीलें उनके पूरे शरीर में चुभी हुई थीं l मैंने उनकी ऐसी हालत देखी थी l

दवा आदि कुछ भी नहीं  था l इसलिए माँ ने सोचा  ' घर लौटे तो कम से कम पानी तो पिला ही सकती हूँ l ' माँ ने पूरे परिवार को ठेले में बिठाया l मैंने पीछे से धक्का लगाया और इस तरह हम लोग घर वापस आए। घर में हाथपम्प वाला कुआँ था और उसमें पानी आ रहा था l माँ रसोई से नमक का डब्बा ढूँढ़ लाई और उन्होंने सबको नमकीन पानी पिलाया l पड़ोस के लोगों को भी, सड़क पर गिरे हुए लोगों को भी, अनेक लोगों को उन्होंने पानी पिलाया l उन दिनों यह अकसर सुनने में आता था कि मरणासन्न लोगों को पानी नहीं पिलाना चाहिए l किन्तु माँ ने सड़क पर गिरे हुए अनेक लोगों को भी खूब पानी पिलाया l उनके साथ मैंने भी पिलाया l

शरीर गर्म होने और प्यास लगने के कारण लोग नदी में कूद गए और डूबकर मर गए l उनकी मृत देह पानी पर तैर रही थीं l कुछ समय बाद सैनिक उन शवों को इकट्ठा करने आए l शीघ्र ही शवों पर मक्खियाँ भिनभिनाने लगीं और कीड़े दिखने लगे l गर्मी का मौसम होने के कारण शवों से तेज़ दुर्गंध भी आ रही थी l सैनिक ट्रक से आए और उन शवों को इकट्ठा कर पीछे की नदी के किनारे पर पेट्रोल जैसी कुछ चीज़ डालकर जला रहे थे l मृत बच्चे ज़रूर अपने माता- पिता से मिलना चाह रहे होंगे l माता पिता भी ज़रूर जानना चाहते होंगे कि उनके बच्चे कहाँ मारे गए l

【 माँ के प्रति कृतज्ञता 】
माँ इधर उधर दौड़कर खाना ढूँढ़ रही थीं l घर में अभी भी अलमारी में पहनने के कपड़े रखे थे l माँ उन्हें लेकर बदले में कुछ खाने की चीज़ें लेने गाँव जाती थीं l एक दिन वे बड़ी मुश्किल से चावल लेकर लौट ही रही थीं कि स्टेशन पर पुलिस ने उनसे चावल जब्त कर लिए l उन दिनों पुलिस वाले बहुत सख्त होते थे l बड़ी मुश्किल से परिवार के लिए खाना जुटा कर वे दूर से पैदल आ रही थीं और एक दिन उनके साथ यह हुआ l

युद्ध समाप्त होने के बाद भी खाने को कुछ भी नहीं था l केवल राशन से एक दिन में एक चावल की ओनिगिरी मिलती थी l ऐसे समय में एक बार रास्ता साफ़ करने आए एक सैनिक ने मेरे सिर को सहलाते हुए कहा, ' कितने दुःख की बात है l ' उनके घर में भी ज़रूर मेरी उम्र का कोई बच्चा रहा होगा l उन्होंने थैले में से एक सूखा ब्रेड निकालकर मुझे थमा दिया l सच में भूख से मेरा बुरा हाल हो रहा था l मैंने बहुत खुश होकर माँ को यह बात बताई l ' माँ ने कहा, ' हफ्ते भर मेहनत करने के लिए उन्हें ब्रेड का एक थैला मिला है। इसलिए संभालकर खाना l' ' इतना कीमती खाना उन्होंने तुम्हें दिया है l' 'ओह, यह बात है l ' मैं यह बात अभी तक नहीं भूली हूँ l

स्कूल के जिन बच्चों को सुरक्षा के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में भेज दिया गया था, युद्ध समाप्त होने के बाद वे अपने अपने घर लौट आए थे l किन्तु अनेक बच्चे माता पिता या परिवार जन को खोकर गेन्बाक कोजी (अणु बमबारी से अनाथ हुए बच्चे) बन गए थे l ऐसे बच्चों के लिए निनोशिमा में शिविर बनाया गया l अणु बमबारी से घायल हुए लोगों के लिए भी अलग शिविर थे l जब अपने परिवार की देख- रेख ही मुश्किल से हो पा रही थी, माँ समय निकालकर निनोशिमा जातीं और उन अनाथ बच्चों की सेवा करतीं l मैंने माँ से कहा, ' दूसरे बच्चों की सेवा को छोड़ मेरा ही ख्याल रखो न l ' चूँकि अपने घर में मैं अकेली ही ऐसी स्वस्थ थी कि कोई मेरी ओर ध्यान ही नहीं देता था । माँ ने जवाब दिया, 'इतनी स्वार्थी मत बनोl मैं रात को तुम्हारे पास लौट आती हूँ न l ' ' वे बच्चे तो चाहे कितनी देर इंतज़ार करें, उनके माता- पिता कभी लौट कर नहीं आएँगे l ' मैं बहुत छोटी थी, किन्तु माँ के इन शब्दों का मुझ पर गहरा असर हुआ l उन्होंने सिखाया कि वक़्त कैसा भी हो, ऐसा व्यक्ति बनो जो हमेशा दूसरे लोगों के बारे में सोच सकता है l माँ दिन रात एक करके काम करती थीं क्योंकि उनको परिवार की देख रेख करनी थी l

ऐसा अक्सर होने लगा कि कभी उनके मसूड़ों से खून आता, कभी वे एकदम खाट पर गिर जातीं l ठीक 1950- 51 में अनेक अणुबमग्रस्त लोग लुकीमिया से बीमार पड़ने लगे l जब मैं छठी कक्षा में थी, माँ की लुकीमिया से मृत्यु हो गई l जिंदगी के आखिरी दिन तक माँ ने सचमुच बहुत मेहनत की l

तब मेरे तीन भाई- बहन और दादी थीं l घर जर्जर हालत में था, किन्तु माँ ने उस घर को किसी तरह ठीक कर दिया था l घर में खंभे सुरक्षित थे, इसलिए रहने की जगह भी थी l मैं खुशकिस्मत ही थी कि भाई बहन भी थे, दादी भी थीं l

जब मैं सातवीं कक्षा में थी, मैं पड़ोस के एक ब्यूटी पार्लर में काम करने लगी l उन दिनों वाशिंग मशीन नहीं थी l मैं हाथ से तौलिए धोती और पार्लर की सफाई करती l एक अच्छी बात यह थी कि उस पार्लर में रात का खाना मिल जाता था l मैं रोज़ खाने की राह देखती था l बड़े भाई अखबार डालने का काम करते और बड़ी बहन कपड़ों की दुकान में काम करने जातीं और रात को स्कूल जातीं l इस तरह हम सब काम करते थे। जो पैसा मिलता, वह हम दादी को दे देते l मुझे ऐसा करना अच्छा लगता था l हम सभी का मिलजुलकर काम करना l मुझे नहीं लगा कि हम किसी बड़ी विपत्ति में हैं l

【 बच्चों की सेहत पर दुष्प्रभाव 】
टोक्यो आने के बाद मैंने काम करते हुए नर्सरी स्कूल की पढ़ाई पूरी की और नर्सरी स्कूल की अध्यापिका बनी जो मैं हमेशा से बनना चाहती थी l कुल 33 वर्ष सेवानिवृत्ति के दिन तक मैंने काम किया l उसी दौरान मेरी शादी भी हुई और 3 बच्चे हुए l मैं बिलकुल चुस्त दुरुस्त थी, इसलिए मैंने अपने बच्चों से अणु बमबारी के बारे में कभी बात नहीं की l जब मेरी दोनों बेटियों की उम्र 20 वर्ष से अधिक हो गई, तब दोनों को एक साथ थाइराइड की समस्या होने लगी l गला सूजने लगा और वे बहुत पतली होने लगीं l हमें समझ ही नहीं आया कि दोनों को इकट्ठे थाइराइड कैसे हो गया l जब अणु बम गिरा था तब मैं खूब रेडिएशन के संपर्क में आई तो थी, किन्तु रेडिएशन के असर या उसके प्रतिफल के बारे में मैंने अधिक नहीं सोचा था l

मैंने बाद में सुना कि जब किस्मत से मेरी बेटियों का रिश्ता तय हुआ, तब दोनों ने वर पक्ष के लोगों से पूछा था, ' हमारी माँ एक हिबाक्शा हैं l इस बात से आपको कोई दिक्कत तो नहीं ?' उस समय मुझे पहली बार एहसास हुआ कि मैं भूलने की कोशिश कर रही थी, लेकिन हूँ तो मैं आखिरकार एक हिबाक्शा ही l मैं यह सोचकर निश्चिंत थी कि छोटा बेटा तो ठीक ठाक है, लेकिन पिछले साल उसे भी टोंसिल की वजह से तेज़ बुखार आया l जब अस्पताल ले गए तो बताया गया कि उसकी श्वेत कोशिकाओं की संख्या 12000 तक बढ़ जाने से जान का ख़तरा है। उसे तुरंत भर्ती कराना चाहिए। एक महीना वह अस्पताल में रहा किन्तु छुट्टी मिलने के 6 महीने बाद फिर से वही हाल हो गया l आजकल मुझे यह लगने लगा है कि मेरे तीनों बच्चों में अणु बमबारी का असर दिखने लगा है l वे तीनों आखिरकार हिबाक्शा दूसरी पीढ़ी हैं l बच्चों को इतनी तकलीफ़ देकर भी मैं उनके लिए कुछ नहीं कर पा रही हूँ l अभी भी बच्चे हर साल थाइराइड का टेस्ट कराते हैं l इसलिए मैं चाहती हूँ कि हिबाक्शा की दूसरी पीढ़ी के लिए सरकार थोड़ा और सोचे l

【 गवाही के लिए गतिविधियाँ 】
जब मैं नर्सरी में पढ़ा रही थी, मैंने पेट- बोली सीखी l यह 35 साल पहले की बात है हिरोशिमा में हुए राष्ट्रीय सम्मेलन के समय पेट बोली के मेरे गुरु जी ने मुझसे कहा कि अणु बमबारी के अपने अनुभव के बारे में बात करो l माँ की मृत्यु के पश्चात मैंने अणु बमबारी के बारे में कभी बात नहीं की l मुझे लगता था कि मैं इतनी सेहतमंद हूँ, अगर मैं अणु बम के बारे में बात करूँगी, तो वे लोग जो अब जीवित नहीं हैं, या वे जो अब भी अणु बम से हुई बीमारियों से जूझ रहे हैं, उनके प्रति अन्याय होगा l मुझे लगता था कि मुझे, जिसे वास्तविक कष्ट या पीड़ा का ज्ञान नहीं है, इस विषय पर बात नहीं करनी चाहिए l

परन्तु बड़ी बहन ने, जो स्वयं सब से अधिक यातना को भुगत रही थीं, कहा, ' अगर किसी ने भी अपने अनुभव साझा करने का प्रयास नहीं किया तो ये सब बातें गुम हो जाएँगी l ' मैं बुरी तरह झुलस गई और हर दिन यही सोचती रहती थी कि पता नहीं मैं कब मर जाऊँगी l इसलिए उन दिनों मेरे आसपास क्या हो रहा था, इसका मुझे बिल्कुल पता नहीं था।' उस विपत्ति के बारे में लोगों ने मुझे बाद में बताया तो था, लेकिन ठीक से मेरी समझ में न आया। किन्तु तुमने तो सब कुछ अपनी आँखों से देखा था l' वे लोग जो अब नहीं रहे, या पानी माँगते हुए, हाथ बढाए मर गए उन लोगों की बात को अन्य लोगों तक पहुँचाने के लिए ही तुम्हें अच्छी सेहत मिली है l ' बड़ी बहन की यह बात सुनकर शायद मैं कुछ आश्वस्त हुई और मैंने सोचा कि मुझे अभी और काम करना है l इसलिए मैं आजकल कहीं भी चली जाती हूँ l मैं सोचती हूँ कि जहाँ भी मुझे बोलने का अवसर मिल जाए , वहीं जाकर मैं अपने अनुभवों के बारे में लोगों को बताना चाहूँगी ।

【 पेट बोली के द्वारा कहना 】
जब मैं पेट बोली के गुड्डे से बात करती हूँ तो प्राथमिक विद्यालय के बच्चे कहते हैं कि यह तो सुनने में बहुत अच्छा लग रहा है l अणु बमबारी की बातें सुनने में बच्चों को  बहुत डर लगता है l लेकिन मेरा गुड्डा उन्हीं के शब्दों में बात करके कहता है ,  'हाँ, ऐसा ही है न l ', 'दर्द हो रहा है न l आदि आदि। इस वक्त शायद पूरे जापान में केवल तीन ही व्यक्ति हैं जो पेट- बोली के द्वारा अणु बमबारी के विषय में बात कर सकते हैं l मेरी बात सुनकर बच्चे लिखकर अपने विचार प्रकट करते हैं और उन्हें पढ़कर मुझे बहुत हिम्मत मिलती है l

एक बच्ची ने लिखा, ' मैं मन लगाकर पढ़ाई करके संयुक्त राष्ट्र में काम करूँगी और इस विश्व से युद्ध को ख़त्म कर दूँगी l' कितना निश्छल भाव है l लड़के अधिकतर लिखते हैं , ' मुझे युद्ध बिलकुल पसंद नहीं l ', ' मुझे यह पसंद नहीं कि हमारे परिवार या दोस्त युद्ध में मारे जाएँ l '  ' हमें यह सब बहुत बुरा लगता है, इसलिए युद्ध को हम ख़त्म कर देंगे l ख़त्म कर ही देंगे l ' ऐसे प्रेरणादायक विचार अकसर लिखे होते हैं l मैं बच्चों को ऐसी बातें सोचने का अवसर प्रदान कर सकी, उस वक्त मुझे लगता है कि हाँ, शायद मैं कुछ काम आ सकी l मुझे बड़ी खुशी होती है जब बच्चे कहते हैं कि मम्मी- पापा को भी आज आपसे सुनी हुई बातों को बताएँगे l ' यह सुनकर मुझे सबसे अधिक खुशी होती है l

【 शांतिपूर्ण विश्व की ओर 】
अणु बम और हाइड्रोजन बम के विरुद्ध हुई विश्व महासभा के स्मारक दिवस में मैं चिबा प्रिफेक्चर की प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित हुई l उस समय फुकुशिमा प्रिफेक्चर के नामिए नगर के मेयर एवं उच्चतर विद्यालय के दो विद्यार्थी भी आए हुए थे l बच्चों ने कहा, ' अब हम लोग दुबारा अपने घर नहीं लौट सकते l वहाँ अभी भी ऐसे बहुत लोग हैं जो बिना गुसलखाने के जिमनेजियम में असुविधाजनक अवस्था में दिन बिता रहे हैं l '  'हमारा घर हमें लौटा दीजिए l' परमाणु ऊर्जा के बिना भी तो बिजली बन सकती होगी l '  ' अणुशक्ति का उपयोग न करें और अपनी प्रकृति व वातावरण की रक्षा भी करें, इस काम के लिए आप लोग अपना सहयोग हमें दें l ' अनुभवियों के शब्द आखिर दिल को छू जाते हैं l मेरे तो आँसूं निकल आए l मैं सोचने लगी हूँ कि मैं ज्यादा कुछ नहीं कर पा रही हूँ, किन्तु अणु बमबारी में जो कुछ देखा, उसे लोगों तक पहुँचाना ही बहुत है l इसलिए मैं आजकल चिबा प्रिफेक्चर के याचीयो शहर के शांति कार्य में भाग लेकर उसकी गतिविधियों में शरीक होती हूँ l


अनुवाद : अनुश्री
अनुवाद निरीक्षण : आकिरा ताकाहाशी
अनुवाद समन्वय : NET- GTAS (Network of Translators for the Globalization of the Testimonies of Atomic Bomb Survivors)
  
  

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