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हो मान्जोन जी (HEO Man Jeong)
लिंग पुरुष   बमबारी के समय उम्र 12  
रिकार्डिंग की तिथि 2010.11.29  रिकार्डिंग के समय की उम्र 77 
बमबारी के समय स्थिति हिरोशिमा(अणु-बम विस्फोट स्थल से दूरी:1.7km) 
Hall site अणु-बमबारी पीड़ितों के लिये हिरोशिमा नेशनल पीस मेमोरियल हॉल 
Dubbed in Hindi/
With Hindi subtitles
With Hindi subtitles 
बमबारी के समय हो मान्जोन जी की उम्र 12 वर्ष थी l वे हिरोशिमा द्वितीय नागरिक विद्यालय के दसवीं कक्षा के छात्र थे वे पिताजी के काम के सिलसिले से हिरोशिमा में रहते थे l बमबारी के समय वे ग्राउन्ड ज़ीरो से लगभग 1. 7 कि.मी. दूर स्थित फुकुशिमा नगर में थे l वे कहते हैं कि हिरोशिमा शहर और उसके लोगों की दुर्दशा को देख, युद्ध के डर के बारे में पता चला l युद्ध नामक शब्द भी देखना नहीं चाहता जिन लोगों ने युद्ध को देखा है, यह उनकी ज़िम्मेदारी है कि युद्ध की त्रासदी को अगली पीढ़ी तक पहुँचाएँ l ऐसा कहने वाले हो जी शान्ति के लिए प्रार्थना करते हैं l

【 बमबारी के पूर्व जीवन 】 
नागरिक विद्यालय में दाखिला लेने से पूर्व वे कोबे में रहते थे l कोबे से वे ह्योगो प्रिफेक्चर के चिबुने नामक स्थान में रहे जो हिमेजी के बिल्कुल नज़दीक है। वे उस समय छठी कक्षा में थे l उस वर्ष के फरवरी या मार्च तक वहाँ रहे l फिर हिरोशिमा आ गए l पिताजी के काम की वजह से परिवार अकसर एक जगह से दूसरी जगह जाता रहता था l पिताजी हिरोशिमा में सेना में उप ठेकेदार थे l उस समय फ़ौज में घुड़सवार फ़ौज होती थी, जिसमें सैकडों घोड़े होते थे l वहाँ से निकलने वाले घोड़ों के मल को उजीना के तट तक लाकर, सुखाकर, सेतो अन्तरस्थलीय सागर के टापुओं में खाद के लिए भेजने का काम था l 

【 बमबारी के समय के हालात 】
उस दिन माँ के मायके के लोगों को मेरे घर के पास को शिफ्ट करना था l मैं सुबह से नानी के साथ उस घर की सफाई कर रहा था l उस समय अणुबम गिराया गया l मैं उस समय घर के अन्दर की सफाई कर रहा था, फिर भी एक तेज़ रोशनी चमकी l उसी क्षण सभी घर गिर गए और मैं नीचे दब गया l आँखें खोलने पर भी सामने अँधेरा होने के कारण कुछ दिखाई नहीं दिया l 10-15 मिनट के बाद घर के कोने से रोशनी आने से कुछ दिखने लगा l सारे घर गिर गए थे और जब ध्यान से देखा तो मेरा पूरा शरीर लहू लुहान था l अणुबम की हवा से खिड़की के शीशे के टुकड़े यहाँ चुभ गए, और अभी तक चुभे हुए हैं l टूटे घर के फट्टे के टुकड़े गिर जाने से पीठ पर खून बह रहा था l बाल बाल जान बची थी l 

नानी माँ के मायके मिनामी शहर में परिवार के पास लौट गई l हम लोगों ने यामाते नदी के आसाही पुल के पास किनारे पर हवाई हमले से बचने के लिए शेल्टर बना रखे थे। कुछ अप्रत्याशित घटना के समय बचाव के लिए l जब मैं गिरे हुए घर से उस शेल्टर की ओर जाने लगा तो देखा फुकुशिमा नदी के किनारे की ओर से दो बच्चे रोते हुए आ रहे थे l उस समय नागरिक विद्यालय की पहली कक्षा में पढ़ रहे छोटे भाई को रोते हुए आते देखा तो पता चला वह जलकर काला हो चुका था और फफोले हो गए थे l जब वह नदी में तैर रहा था तब बम गिरा था l छोटे भाई और पड़ोस के दोस्त को किसी सुरक्षित जगह ले जाने के लिए जब भाई का हाथ पकड़ा तो उसकी सारी चमड़ी निकलने लगी l जब शेल्टर की ओर जाने लगे तभी माँ हमें ढूँढ़ते हुए आ रही थीं l माँ के साथ हम शेल्टर गए l भाई का पूरा शरीर झुलस गया था, किन्तु दवा भी न होने के कारण माँ आलू पीसकर उसके शरीर पर लगा रही थीं l 

जब बम गिरा तब पिताजी काम पर जा रहे थे l उनका आधा शरीर झुलस गया था l शरीर का वह भाग जो छाया में था उसे कोई हानि नहीं हुई l किन्तु जो भाग गर्म रोशनी की चपेट में आया वह झुलस चुका था l पिताजी ने बताया कि बमबारी से पैदा हुई गर्मी के कारण वे नदी में कूद पड़े थे l लगभग 10 बजे के करीब वे साइकिल पर वापिस आए l पिताजी के लौटने के तुरंत बाद काली बारिश होने लगी l पहले हम सभी ने सोचा कि बारिश है, किन्तु उसका रंग काला था l चूँकि गर्मी का समय था, हम लोग केवल निकर और बनियान पहने हुए थे। हाथ पर पड़ी बारिश की बूँदें तेल की तरह चिप चिप नीचे गिर रही थीं l लोग तो यहाँ तक बात करने लगे कि कहीं वह तेल तो नहीं l 

शाम को कोइ स्टेशन के पास सेना ने टेन्ट लगाए और सेना के डाक्टर और नर्स वहाँ इलाज करने लगे l मैं वहाँ भी गया था, किन्तु दवा अधिक नहीं थी l केवल लाल टिंचर थे, और लोग जले हुए स्थानों पर खाने वाला तेल लगवा रहे थे l मुझे याद है, एक महिला जो काफी झुलसी हुई थी, उसके पैर की ओर चमड़ी निकलकर लटक आई थी l एक व्यक्ति के तो मुँह में इतना मोटा डंडा घुसा हुआ था l वह मुझे अभी भी याद है l हमने प्रत्यक्ष देखा कि मरे हुए इनसान, घोड़े, गाय नदी में बह रहे हैं l उस तबाही को देखकर, हालाँकि तब मैंने छठी ही पास की थी, युद्ध का भय साफ़ समझ आ गया था l 

युद्ध तो चल रहा था, किन्तु वास्तविक रूप से मैंने न तो अनुभव किया था, न देखा था l ऐसी स्थिति में अणु बमबारी हुई l मुझे लगा युद्ध बहुत ही भयावह है l इतने सारे लोगों को जान गवानी पड़ती है l जब मैंने यह सोचा तो बहुत डर गया l कोइ में इलाज करवाकर, शेल्टर में जब वापिस आए तो देखा इवाकुनी में रहने वाले पिताजी के दूर के भाई यह सुनकर कि कोई अजीब-सा नया बम गिरने से बहुत से लोग मर गए हैं, हमें ढूँढ़ते हुए आ गए l उसी दिन शाम को हम सब लोग शरणार्थी बनकर माल गाड़ी से इवाकुनी गए l 

【 युद्ध के पश्चात का जीवन 】 
उसके बाद इवाकुनी में रहे और आखिरकार कोरिया लौट गए l इवाकुनी देहात था फिर भी वहाँ एक अस्पताल था l मैंने वहाँ अपने घाव का इलाज कराया l उस घाव का निशान अभी भी है l पिताजी और छोटे भाई की चोटें सबसे गंभीर थीं l पिताजी लंबे समय तक अस्पताल में रहे l गर्मियों का मौसम था l उस वक्त मैंने जो देखा, वह इतना भयावह था कि मैं शब्दों में बयान ही नहीं कर सकता l घाव पर मक्खियाँ भिन भिना कर अंडे दे रही थीं l सारे घाव सफेद अंडों और बिलबिलाते कीडों से भरे हुए थे। अस्पताल जाने पर देखा कि पिताजी और छोटे भाई का शरीर ऐसे सफ़ेद ज़ख्मों से भरा हुआ है l एक हफ्ते बाद छोटे भाई की आखिरकार मृत्यु हो गई l पिताजी ठीक होने तक काफी समय तक अस्पताल में रहे l जले के दाग बहुत भयावह होते हैं l ऐसे सफ़ेद हो जाते हैं l आखिरकार कोरिया लौटने के पश्चात पिताजी अधिक समय तक नहीं जिए l लगभग 60 वर्ष के थे l मृत्यु का कारण अणु बमबारी से हुई बीमारी थी l 

कोरिया लौटने के पश्चात, उस समय का जीवन, इतना दरिद्र था कि जीवन कहलाने के लायक ही नहीं था l खाने को भी नहीं था l माँ के परिवार वाले बहुत पहले से ही समृद्ध थे l आखिरकार हम भी वहाँ जाकर रहने लगे l वर्ष 1950, कोरिया युद्ध आरम्भ हुआ l मैं उस समय ठीक 18 वर्ष का था l मैं सेना में भर्ती हुआ और कोरिया युद्ध में भाग लिया l 27 जुलाई 1953, संयुक्त राष्ट्रसंघ के हस्तक्षेप से कोरिया युद्ध का युद्धविराम हुआ l उस समय मैं सेवा मुक्त हो घर लौटा l लेकिन मैं देहात में गरीबी के कारण जीवन व्यतीत नहीं कर सकता था l इसलिए उपनिवेशी काल में जापान के बनाए शिपयार्ड में मैंने नौकरी कर ली l तब से अब तक मैं बुसान में ही रह रहा हूँ l 

【 शान्ति का सन्देश 】
1988 में हिरोशिमा में हिबाक्शा स्वास्थ्य डायरी के लिए मैंने आवेदन दिया l मैं अकेले आया l मुझे हिबाक डायरी मिली और मैं लौट गया l माँ के मायके के ममेरे भाई से जब डायरी के लिए आवेदन करने के लिए कहा तो उसने कहा कभी यह मत कहना कि हम हिबाक्शा हैं l कभी हिबाक्शा का नाम भी मत लेना l ' जब मैंने पूछा ' क्यों ', तो उन्होंने कहा ' बच्चों की कभी शादी नहीं हो पाएगी l' परमाणु मनुष्य के शरीर को प्रभावित करता है l जिससे शादी के बाद भी बच्चे अपंगता के साथ पैदा होते हैं l ' ऐसा वे कहते थे। लेकिन जब तक हम अपने आपको हिबाक्शा न मानेंगे, हम लोग कैसे अणुबम की गवाही दे सकते हैं। सभी को अणुबम एवं युद्ध के भय को समझने की ज़रुरत है l 

युद्ध की जानकारी प्राप्त कर, युद्ध मानव जाति को कितना अधिक प्रभावित करता है एक दूसरे को मारना रोकने के लिए, शान्ति के आधार पर पहले एक ऐसा युद्ध था और उस युद्ध में ऐसे भयानक हथियार का उपयोग किया गया। मानव जाति का संहार करने वाले हथियारों का उपयोग करने वाले युद्ध कभी नहीं होने चाहिए। इन बातों को लोगों तक पहुँचाने की जिम्मेदारी हम जैसे लोगों की है जिन्होंने युद्ध को देखा है l मैंने अब तक अणुबम से हुई दुर्दशा को भी देखा है और कोरिया युद्ध में भाग भी लिया है l मैंने युद्ध के कई पहलुओं को देखा है। इसलिए वर्तमान पीढ़ी को कि युद्ध कैसा है... मैं युद्ध शब्द को देखना नहीं चाहता। मैं दो अक्षरों के इस शब्द को लिखना भी नहीं चाहता। यही मेरे दिल की बात है l 

एक शांतिपूर्ण देश बनाने के लिए, एक दूसरे के सहयोग के साथ, अन्य राष्ट्रों के साथ मेल- जोल बनाकर, अगर युद्ध करने की स्थिति कहीं उत्पन्न हो जाती है, तो उसे रोकने के लिए काबिल लोग हों बातचीत कर समाधान निकालते हुए जिएँ। युद्ध को जानने वाले लोगों को हमेशा चिल्लाकर नई पीढ़ी को बताना चाहिए l ऐसे राष्ट्र बनने के लिए जो आपस में युद्ध न करें शान्ति के बारे में हमेशा सोचते हुए, शान्ति से जिएँगे। वह देश जिसमें युद्ध न हो, वह समाज जिस में युद्ध न हो, अपने दिलों में केवल शान्ति के बारे में सोचते हुए जिएँगे तो युद्ध नहीं होगा l 

अनुवाद : अनुश्री
अनुवाद निरीक्षण : आकिरा ताकाहाशी
अनुवाद समन्वय : NET- GTAS ( Network of Translators for the Globalization of the Testimonies of Atomic Bomb Survivors)
 
  

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