●उन दिनों का जीवन
मेरा जन्म सन 1917 में नाकानोशो गांव, मित्सुगी काउंटी (वर्तमान में इनोशिमा-नाकानोशो-चो, ओनोमिची सिटी) में हुआ था। मेरे पिता नाकानोशो डाकघर में कार्यरत थे, जबकि मेरी मां, जो कि एक पूर्णकालिक गृहिणी थी, एक छोटे-से खेत में काम किया करती थी। तीन बेटियों के बाद जन्मे पहले पुत्र के रूप में मेरे जन्म के दो वर्ष बाद मेरे छोटे भाई का जन्म हुआ। सन 1924 में, मेरी छोटी बहन की मृत्यु उसके जन्म के कुछ ही समय बाद हो गई। उसके बाद, मेरी मां की भी मृत्यु हो गई। तब से मैं अपने पिता के साथ अकेला ही रहा।
सन 1939 में अनिवार्य भर्ती के तहत मुझे पांचवी डिवीजन, फील्ड आर्टिलरी, पांचवी रेजीमेंट में तैनात किया गया। एक स्क्वाड्रन लीडर के रूप में, मैं तीन वर्षों तक वियतनाम और चीन में अलग-अलग स्थानों पर घूमता रहा। सेवानिवृत्ति के बाद मैं मारुकाशी डिपार्टमेंट स्टोर की हिकारी शाखा में कार्य करने लगा, जिसे मेरा चचेरा भाई चलाया करता था। सन् 1943 में, मैंने अपनी नौकरी बदल ली और मेरे दादाजी द्वारा संचालित मियाजी उत्पादन कंपनी के हिकारी शाखा कार्यालय में कार्य करने लगा। नौकरी बदलने का कारण यह था कि इस नई कंपनी का मुख्यालय मेरे पिता के घर के पास ही था और इसलिए मैंने सोचा कि वहां कार्य करने पर अपने पिता का ध्यान रख पाना मेरे लिए सरल हो सकेगा। नौकरी बदलने के दौरान ही मेरा विवाह भी हुआ और अप्रैल 1944 में मेरे बड़े बेटे का जन्म हुआ।
अप्रैल 1945 में मुझे दूसरी बार अनिवार्य सैन्य-भर्ती का आदेश मिला। इस बार मैंने अपनी पत्नी और बच्चे को इनोशिमा भेज दिया। एक बार फिर मुझे फील्ड आर्टिलरी, पांचवी रेजीमेंट में जाने को कहा गया था, लेकिन इस बार मैंने सैन्य पंजिका रक्षक के रूप में रेजीमेंट के मुख्यालय में कार्य किया। चूंकि मुख्य टुकड़ियों को मुख्य-भूमि की रक्षा के लिए देश के विभिन्न स्थानों पर भेज दिया गया था, इसलिए मुख्यालय में रहने वाले सैनिकों की संख्या बहुत ही सीमित थी। इन सैनिकों में से, एक सैन्य पंजिका रक्षक के रूप में मेरा कार्य सैन्य पंजिका बनाना और सैन्य पुस्तिकाएं वितरित करना था। यहां तक कि मुझे सैन्य युद्धाभ्यास भी नहीं करना पड़ता था।
सार्जन्ट ओकादा, मेरे वरिष्ठ अधिकारी, जो कि कोबाटाके गांव, जिन्सेकी काउंटी (वर्तमान में जिन्सेकीकोगेन-चो-जिन्सेकी काउंटी) से थे, एक उत्कृष्ट व्यक्ति थे। चूंकि उस कमरे में सिर्फ हम दोनों ही काम किया करते थे, इसलिए वे मुझे बहुत पसंद करते थे।
जून 1945 में, मेरी टुकड़ी का नाम बदलकर चुगोकु मिल्ट्री डिस्ट्रिक्ट आर्टिलरी रिजर्व्स (चुगोकु 111वीं इकाई) कर दिया गया। हमारी टुकड़ी हिरोशिमा महल की बाईं ओर थी। एक खंदक के चारों ओर अनेक दो-मंजिला सैन्य बैरक बनाए गए थे और चार तोपखाना इकाइयां तैनात की गई थीं।
●अणु-बमबारी के पूर्व की स्थिति
सैन्य-सेवा से मुक्त किए जाने के बाद, मेरा इरादा वापस लौटकर अपने पिछले कार्यालय में कार्य करने का था। ऐसा प्रतीत होता था कि मेरी कंपनी ने भी मेरे लिए यही योजना बनाई थी। उसके अध्यक्ष की ओर से तोपखाना इकाई को एक पत्र भेजा गया था, जिसमें मुझसे यह पूछा गया था कि क्या मैं एक महत्त्वपूर्ण बैठक में शामिल होने के लिए हिकारी सिटी आ सकता हूं। हालांकि, मैं बाहर जाने की अनुमति मांगने में झिझक रहा था क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि मेरे साथी यह सोचें कि मैंने व्यापार के बहाने अपना स्टेशन छोड़ दिया था क्योंकि मेरे पिछले कार्यालय के संचालक मेरे रिश्तेदार थे। मैं इसी दु्विधा की स्थिति में था, जब सार्जन्ट ओकादा ने सौजन्यतापूर्वक मुझसे कहा, "चिंता मत करो। मैं तुम्हारे लिए अनुमति ले आऊंगा"। मैं उनका आभारी हूं कि मुझे बाहर जाने की विशेष अनुमति मिल गई और मैं 5 अगस्त (रविवार) की सुबह मैं हिकारी सिटी पहुंचा। यह अनुमति इस शर्त पर दी गई थी कि मैं अगली सुबह 6 अगस्त (सोमवार) को हिरोशिमा स्टेशन पर सुबह 9:00 बजे आने वाली रेल पकड़कर अपनी यूनिट में लौट आऊंगा।
6 अगस्त को मैं सुबह 4:00 बजे उठा और नाश्ते के बाद हिकारी स्टेशन से एक रेल पकड़ी। मुझे लगता है कि सुबह 8:15 बजे, अणु-बमबारी के समय, मेरी रेल इवाकुनी स्टेशन पहुंचने ही वाली थी। चूंकि रेलगाड़ी की तेज आवाज के कारण मुझे बाहर का शोर सुन पाना कठिन था, इसलिए मैं विस्फोट की आवाज नहीं सुन सका। लेकिन सभी यात्री खिड़कियों से अपनी दाईं ओर (रेलगाड़ी की दिशा में) देखकर कह रहे थे, "विज्ञापन के गुब्बारे जैसा धुएं का एक बहुत बड़ा बादल हिरोशिमा के आकाश में उमड़ रहा है"। किसी भी घोषणा के बिना, क्योंकि कोई भी ये नहीं जानता था कि आखिर हो क्या रहा है, मेरी रेल ने आगे बढ़ना जारी रखा और आखिरकार वह इत्सुकाइची स्टेशन पर आकर रूक गई। स्टेशन पर जहां हमसे पहले वाली रेलगाड़ियां भी रूकी हुई थीं, सभी यात्रियों से उतर जाने को कहा गया क्योंकि हम हिरोशिमा की दिशा में और आगे नहीं जा सकते थे। यह मेरे लिए हानिकारक था क्योंकि मैंने सुबह 9:00 बजे हिरोशिमा पहुंचकर यथाशीघ्र अपनी यूनिट में लौटने का वचन दिया था।
इत्सुकाइची स्टेशन के सामने एक इंजन से निकलते काले धुएं के कारण इतना अंधेरा हो गया था, मानो रात हो गई हो। कुछ देर बाद जब काला धुंआ छंटने लगा, तब मुझे पता चला कि सेना-पुलिस का एक ट्रक पास ही खड़ा था। शायद उन लोगों ने अभी-अभी कोई काम खत्म किया था, और अपनी यूनिट में लौटने की आशा से जब मैंने उनसे मुझे हिरोशिमा महल तक छोड़ने को कहा, तो वे तु्रंत तैयार हो गए। उनके दल में दो लोग थे, एक कॉर्पोरल और एक सार्जन्ट। शायद वे अणु-बम विकिरण के प्रत्यक्ष संपर्क में नहीं आए थे क्योंकि उनके शरीर पर बाहरी चोट के कोई निशान नहीं थे। यदि वे आज भी जीवित हों, तो मैं खुद उनसे मिलकर उनके प्रति आभार प्रकट करना चाहूंगा।
●अणु-बमबारी के बाद शहर की स्थिति
हालांकि मुझे ठीक-ठीक याद नहीं है कि हम किस रास्ते से इत्सुकाइची से हिरोशिमा गए थे, लेकिन मुझे लगता है कि वे ट्रक को धान के खेतों से गुजरती किसी सीधी सड़क से होते हुए ले गए थे। सड़क पर विस्थापितों का सैलाब उमड़ रहा था, जो कि उस विपदा से बचकर भागने का प्रयास कर रहे थे। हिरोशिमा सिटी में प्रवेश करने के बाद वे ट्रक को ट्राम स्ट्रीट पर ले गए। ऐसा लग रहा था कि सब लोगों को शायद पहले ही हटा दिया गया है। पूरा शहर वीरान लग रहा था। यहां तक कि हमें कोई कुत्ता या बिल्ली भी दिखाई नहीं दिए।
हालांकि पहले मैंने उनसे मुझे हिरोशिमा महल तक छोड़ने को कहा था, लेकिन उन्होंने मुझे आइओइ पुल के पास ही उतार दिया। मेरी यूनिट पुल के पास ही थी, इसलिए मैंने सोचा कि मैं वहां तक पैदल ही पहुंच जाऊंगा। लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सका क्योंकि सड़क बहुत गर्म थी। मैंने फीतों वाले जूते पहने हुए थे, जो कि गेटर से लिपटे हुए थे, लेकिन मैं एक मीटर भी आगे नहीं जा सका और मुझे पुल पर ही रूकना पड़ा।
शायद एक घंटे तक यही होता रहा कि मैं 50 सेमी आगे बढ़ता था और फिर वापस पुल की ओर 50 सेमी पीछे आ जाता था। अचानक तेज वर्षा होने लगी, मानो मेरी त्वचा में सुइयां चुभोई जा रही हों। यह काली वर्षा थी, जिसने पूरे क्षेत्र को इस तरह भिगो दिया, जैसे हर तरफ तेल छिड़क दिया गया हो। इसके बावजूद, जब मैंने हाथों से अपना चेहरा पोंछा, तो मुझे बिल्कुल भी तेलयुक्त नहीं लगा। जले हुए मैदान पर वर्षा से बचने की कोई जगह न होने के कारण मेरी त्वचा पूरी तरह भीग गई और मैं बारिश के रुकने का इंतज़ार करने लगा।
वर्षा रूकने पर, तापमान में अचानक परिवर्तन हुआ और यह शरद ॠतु की तरह ठंडा हो गया। गर्म सड़क भी पर्याप्त रूप से इतनी ठंडी हो चुकी थी कि उस पर चला जा सकता था।
जब मैं अपनी यूनिट में पहुंचा, तो बैरक दयनीय स्थिति में थे। जिस जगह बैरक बने हुए थे, वह इस तरह साफ हो चुकी थी, मानो वहां कभी कुछ था ही नहीं क्योंकि सभी इमारते ढहकर जल चुकी थीं और उनकी राख वर्षा के साथ बह गई थी।
सार्जन्ट ओकादा अपनी मौत की कगार पर थे क्योंकि उनका पूरा शरीर जल चुका था, लेकिन उनकी सांस अभी भी चल रही थी। चूंकि घावों के कारण उनका चेहरा पूरी तरह बदल चुका था, इसलिए मैं उन्हें तब तक नहीं पहचान सका, जब तक कि उन्होंने खुद मुझसे बात नहीं की, "मियाची, तुम भाग्यशाली हो "!मैं कुछ देर के लिए वहां से चला गया, लेकिन जब मैं शाम को वापस लौटा, तो मुझे सार्जन्ट ओकादा नहीं दिखाई दिए। अवश्य ही उन्हें कहीं और भेज दिया गया होगा।
हालांकि मेरी याददाश्त थोड़ी कमज़ोर है, लेकिन शायद 6 अगस्त की काली वर्षा के तुरंत बाद मैं दूसरी आर्मी फोर्सेस कमांड के जनरल शुनरोकु हाता से मिला। मुझे जनरल के एक सहायक सैन्य अधिकारी ने आदेश दिया, "तुम, जनरल हाता को उठाकर नदी पार करो और इस बात का ध्यान रखना कि वे भीग न जाएं"! जनरल हाता एक नाटे व्यक्ति थे। नदी पार करने के आदेश का पालन करते हुए मैंने जनरल को अपनी पीठ पर लाद लिया और वे बिल्कुल भी भारी नहीं थे।
●बचाव कार्य
वेस्ट परेड ग्राउंड में लगभग 90 सैनिक जमा थे, जो कि अणु-बमबारी से सुरक्षित बच गए थे। मुझे और अन्य सैनिकों को लाशों को जलाने के काम में लगाया गया था। बड़ी संख्या में शवों को जलाने की आवश्यकता पड़ती थी, जैसे कल 250, तो आज 300।
इस कार्यवाही के दौरान हिरोशिमा महल की सीढ़ियों पर मृतावस्था में मिले दो अमरीकी सैनिक विशेष रूप से स्मरणीय हैं। अवश्य ही वे अमरीकी सेना से पकड़े गए युद्ध-बंदी रहे होंगे, जिन्हें उन दिनों हिरोशिमा महल के पास वाली इमारत में रखा गया था।
6 अगस्त को, अणु-बमबारी वाले दिन, खाने के लिए कुछ न होने के कारण, मैं अपने 30 साथियों को लेकर कुछ बिस्किट लाने के लिए सिटी हॉल गया था। सिटी हॉल की स्थिति हमारी उम्मीद से बहुत अलग थी। हमने पूरा सिटी हॉल छान मारा, लेकिन हमें कहीं बिस्किट नहीं मिले। उस दिन अपनी भूख मिटाने के लिए मजबूरी मे हमें गर्म पानी में चीनी मिलाकर पीना पड़ा। शहर के बाहर से आए बचाव दल की सक्रियता के कारण 7 अगस्त से, हमें राशन से चावल और बिस्किट मिलने लगे।
अगस्त के अंत तक हमने अपने बचाव कार्य जारी रखे और उस दौरान हम खुले में ही सोया करते थे।
अंततः 31 अगस्त को, सभी इकाइयों को अलग करने का आदेश जारी कर दिया गया। जब इकाइयां अलग हुईं, तो सैन्य-भंडार में रखीं विभिन्न वस्तुएं सैनिकों को वितरित की गईं। मुझे सेना की वर्दी और कंबल मिले। ग्रामीण भागों से आए कुछ सैनिकों को सेना के घोड़े दिए गए और वे उन पर सवारी करते हुए अपने घरों को लौट गए।
1 सितंबर को, मैं इतोज़ाकी बंदरगाह से एक जहाज पर सवार हुआ और इनोशिमा लौटा।
●बीमारियां
इनोशिमा लौटने के लगभग दो माह बाद, धान के एक खेत में पेशाब करते समय मुझे आश्चर्य हुआ कि मैंने लगभग 1-शो (लगभग 1।8 लीटर) मूत्र का विसर्जन किया, जिसका रंग भूरा था। उसके बाद मूत्र का भूरा रंग बना रहा। अगले वर्ष जठरांत्रिय समस्याओं के लिए मुझे अस्पताल में भर्ती करवाया गया। बाद में मुझे यकृत की विफलता के कारण पुनः अस्पताल में भर्ती किया गया। सन 1998 में मुझे मूत्राशय का कैंसर हो गया और तभी से मैं इसके उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती हूं।
सितंबर 1960 में मुझे अणु-बम उत्तरजीविता का स्वास्थ्य पुस्तिका प्रमाणपत्र प्राप्त हुआ। वह प्रमाणपत्र पाने से पूर्व तक मैं तय नहीं कर पाया था कि मैं वह प्रमाणपत्र प्राप्त स्वीकार करूं या नहीं और अंत में नगरपालिका की सलाह मानकर मैंने उसे लेने का निर्णय किया। परिणामस्वरूप, जब भी मेरा सामना किसी ऐसी बीमारी से हुआ, जो अणु-बमबारी के कारण उत्पन्न हुई लगती थी, तो मैं इस बात के लिए आभार व्यक्त किया करता था कि मेरे पास वह प्रमाणपत्र था।
●युद्धोपरांत जीवन
युद्ध के बाद मैंने इनोशिमा में एक छोटी दु्कान शुरू की। चूंकि हमारी दुकान ग्रामीण-क्षेत्र में थी, इसलिए हम न केवल खाद्य-पदार्थ, बल्कि परिष्कृत चावल व गेहूं तथा शुद्ध तेल भी बेचा करते थे और बाद में हम घरेलू उपकरण बेचने लगे। हालांकि जीवन सरल नहीं था, लेकिन फिर भी खर्चों को सुनियोजित करके मैं अपने बच्चों को यूनिवर्सिटी में भेज पाने में सफल रहा।
सन 1946 में मेरी बड़ी बेटी के जन्म के कुछ ही समय बाद, वह बच्ची और मेरी पत्नी चल बसे। जब मैंने 1947 में अपनी वर्तमान पत्नी से विवाह किया, तो उसके बाद दो बेटों और एक बेटी का जन्म हुआ। चूंकि युद्ध के बाद जन्मी मेरी सभी संतानें शारीरिक रूप से कमज़ोर थीं, इसलिए मुझे संदेह है कि ऐसा अणु-बम विकिरण के संपर्क में आने से मुझ पर हुए प्रभाव के कारण था। शायद मेरी पत्नी ने हमारी बेटी से कहा था कि वह इस बात का ज़िक्र किसी से न करे कि वह दूसरी पीढ़ी की अणु-बम पीड़ित थी क्योंकि इस तथ्य के कारण बाद में उसकी शादी में बाधा आ सकती थी।
●अणु-बमबारी में वरिष्ठ अफसर की मौत
यदि युद्ध अणु-बमबारी के बाद भी जारी रहता, तो जापान की स्थिति बहुत कठिन हो जाती। मेरा मानना है कि वर्तमान शांति अनेक बलिदानों के बाद मिली है।
मैं अणु-बम विकिरण के प्रत्यक्ष संपर्क में आने से बच गया और मैं आज भी जीवित हूं, इस बात का पूरा श्रेय मुझे यूनिट से बाहर जाने की अनुमति दिलवाने के सार्जन्ट ओकादा के निर्णय को जाता है। 6 अगस्त को जब सार्जन्ट ने मुझसे कहा था, "मियाची, तुम सौभाग्यशाली हो", उसके बाद से ही मुझे उनका कोई पता नहीं चला। बहुत समय तक मेरे मन पर इस बात का बोझ बना रहा। "सार्जन्ट, सबसे ज़्यादा मैं आपके प्रति आभार प्रकट करना चाहता हूं"। मेरी आशा को समझते हुए, मेरे बच्चों ने इंटरनेट पर उनके बारे में जानकारी ढूंढने की कोशिश की, एक के बाद एक कई मंदिरों में जाकर उनके बारे में पूछताछ की और अंततः मेरे लिए सार्जन्ट ओकादा की समाधि ढूंढ निकाली।
सन 2007 में मैं और मेरे सभी परिवार-जन सार्जन्ट ओकादा की समाधि के दर्शन करने गए। उनकी समाधि पर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने और उनकी आत्मा के प्रति आभार प्रकट करने के बाद, अंततः मुझे महसूस हुआ कि मेरे सीने से एक बहुत बड़ा भार उतर गया है।
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