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मां के प्रति मेरी भावनाएं 
कावागुची हिरोको(KAWAGUCHI Hiroko) 
लिंग महिला  बमबारी के समय उम्र
लिखने का वर्ष 2008 
बमबारी के समय स्थिति हिरोशिमा 
Hall site अणु-बमबारी पीड़ितों के लिये हिरोशिमा नेशनल पीस मेमोरियल हॉल 

●6 अगस्त व उससे पूर्व की स्थिति
उस समय हमारे परिवार में चार लोग थे-मेरी मां, बड़ा भाई व बहन, और मैं। हम लोग कामितेन्मा-चो में रहा करते थे। मेरे पिता, तोशियो ओमोया, 1938 में चीन में युद्ध के दौरान शहीद हो गए। चूंकि मेरे पिता की मृत्यु के समय मैं एक छोटी-सी बच्ची थी, इसलिए मैं अपने पिता का चेहरा केवल उनके फोटो से ही पहचानती थी। मेरे परिवार के अनुसार, बचपन में, जब भी मैं अपने पिता के फोटो देखती, तो मैं कहा करती थी, "मेरे पिता फोटो से बाहर नहीं आ सकते क्योंकि कोई भी उनके लकड़ी के खड़ाउं लेकर नहीं गया"।

मेरी मां शिजुको ने अकेले ही हम सभी का पालन-पोषण किया। अन्य सभी अभिभावकों की तुलना में वह अधिक शिक्षा-प्रवृत्त मां थी। हालांकि वह युद्ध का दौर था, लेकिन फिर भी उसने मुझे सुलेखन व बैले-नृत्य सीखने की अनुमति दी। जब मेरे भैया ने मिडिल स्कूल की प्रवेश परीक्षा दी, तो उस परीक्षा में उनकी सफलता की प्रार्थना के लिए मां रोज सुबह मंदिर जाया करती थी। शायद वह सोचती थी कि उसके पति की मृत्यु के बाद केवल शिक्षा ही एक ऐसी वस्तु है, जो वह अपने बच्चों को दे सकती है।

उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए, मेरी मां एक साथ कई काम करते हुए सुबह से रात तक कड़ी मेहनत किया करती थी। मुझे याद है कि सुबह जब वह अखबार बांटने जाया करती थी, तो भैया और दीदी उसकी सहायता किया करते थे। हालांकि मैं छोटी थी, लेकिन फिर भी मैं उनके साथ चलने की कोशिश करती थी।

चूंकि उन दिनों हर कोई अपने पड़ोसियों के साथ भी अपने रिश्तेदारों जैसा ही व्यवहार किया करता था, इसलिए जब मेरी मां हर रोज कार्य में व्यस्त होती, तो हम बच्चों की देखभाल हमारे आस-पास के लोग करते थे।, मेरे चाचा जी का परिवार हमारे पड़ोस में रहता था और मेरे दादाजी का परिवार पास के एक शहर, हिरोस-मोटोमाची में, रहता था।

उस समय, कई प्राइमरी स्कूलों को सामूहिक रूप से उनके स्थान से हटाया जा रहा था। साथ ही विद्यार्थियों को भी ग्रामीण-क्षेत्रों में रहने वाले उनके रिश्तेदारों के घरों से ले जाया जा रहा था। मैं तेन्मा प्राइमरी स्कूल में तीसरे-वर्ष की छात्रा थी, और मैं भी अपनी दीदी सुमिवे के साथ, जो कि उसी विद्यालय में छठे वर्ष की छात्रा थी, एक मंदिर में रहने चली गई। हालांकि मेरी मां और भैया तोशियुकी कोई न कोई उपहार, जैसे आलू, लेकर हमसे मिलने आया करते थे, लेकिन इसके बावजूद दीदी की और मेरी उम्र इतनी कम थी कि अपने माता-पिता के बिना जीना हमारे लिए बहुत कठिन था। चूंकि मेरी मां ने मुझे बताया कि यदि हमें मरना पड़ा, तो हम सभी एक साथ मरेंगे, इसलिए मैंने अपनी मां से कहा कि वह मुझे घर ले जाए और मैं कमितेन्मा-चो के अपने घर में लौट आई। संभव है कि यदि मैं निष्कासन-स्थल पर रूक जाती, तो शायद हम सभी बच जाते क्योंकि अणु-बमबारी के दौरान मेरी मां और भाई हमसे मिलने आए होते।

●6 अगस्त की स्थिति
चूंकि 6 अगस्त के दिन हमारे स्कूल में छुट्टी थी, इसलिए मैं अपने मित्रों के साथ पड़ोस में गई थी।

आसमान में धुआं उड़ाते बी-29 विमानों को देखते ही मैंने तुरंत अपने दोनों हाथों से अपनी आंखें और कान बंद कर लिए। शायद ऐसा मैंने अचेतन रूप से किया था क्योंकि हमें ऐसा करने का प्रशिक्षण दिया गया था। इसलिए मैंने प्रकाश का संकेत नहीं देखा क्योंकि मेरी आंखें ढंकी हुई थीं।

सौभाग्य से अणु-बमबारी के समय मैं एक घर के छज्जे के नीचे, एक दीवार की दूसरी ओर सुरक्षित थी, इसलिए न तो मुझे कोई चोट आई और न ही गर्मी का अहसास हुआ। मेरी सहेली के सिर पर हल्की-सी चोट ही आई थी, इसलिए हम खुद ही एक दरार में से रेंगते हुए उस मकान से बाहर निकले और घर लौट आए।

जब मैं घर पहुंची, तो मेरी मां, जो कि अणु-बमबारी से घायल हो चुकी थी, मेरा इंतज़ार कर रही थी। उस दिन, मेरी मां राशन की दुकान से चावल लेने बाहर गई थी और घर लौटते समय उसे अणु-बमबारी का सामना करना पड़ा था। जैसे ही मैं घर पहुंची, उसने झपटकर प्राथमिक-चिकित्सा का थैला लिया और अपने साथ मुझे लेकर विनाश से बचने के लिए भाग निकली।

आस-पास देखने पर, मुझे ढह चुके घर और एक पुल की जलती हुई रेलिंग दिखाई दी। हमने वह पुल पार किया और कोइ नगर की ओर बढ़े। रास्ते में, पूरी तरह जलकर काले हो चुके एक व्यक्ति ने" मुझे थोड़ा पानी दे दो, कृपया मुझे थोड़ा पानी दे दो", कहते हुए हमसे सहायता की मांग की। लेकिन हमें बचकर भागने की इतनी जल्दी थी कि हम उसके लिए कुछ न कर सके। मुझे आज भी इस बात का अफसोस है कि मैंने उसका नाम तक नहीं पूछा।
अंततः जब हम कोइ प्राइमरी स्कूल पहुंचे, तब मुझे अहसास हुआ कि मैं नंगे पैर थी। मुझे आश्चर्य हुआ कि मलबे से होकर दौड़ने के बावजूद मुझे कोई चोट क्यों नहीं लगी थी।

कक्षाओं और बरामदों सहित स्कूल का प्रत्येक स्थान घायलों से भरा हुआ था। मैंने वहां अपनी मां का उपचार करवाया। मेरी मां के हाथ, पैर व पीठ गंभीर रूप से जल गए थे, और उसका चेहरा भी थोड़ा जल गया था, तथा उसके सिर में एक बड़ा गड्ढा बन गया था। मेरी मां का उपचार केवल थोड़ा-सा मरहम लगाने तक ही सीमित था। आज उस बात को याद करने पर, मैं पक्के तौर पर नहीं कह सकती कि मेरी मां के शरीर पर सचमुच कोई मरहम लगाया भी गया था या नहीं।

उसके बाद, मेरी मां और मैं हमारे शहर की दिशा में ओगावाची-माची में बने एक निर्दिष्ट शरण-स्थल की ओर बढ़े। जब हम इस पनाहगाह में पहुंचे, तो आसमान से काली वर्षा शुरु हो गई। मैंने पास ही पड़ी धातु की एक चादर उठाई, और हमने खुद को उसके नीचे छिपाकर उस वर्षा से अपनी रक्षा की। वर्षा रूकने के कुछ समय बाद मेरे भैया तोशियुकी भी वहां आ गए।

उस दौरान, मेरे भैया मात्सुमोटो औद्योगिक विद्यालय में द्वितीय-वर्ष के छात्र थे, और उन्हें उजिना के तट से दूर कानावाजिमा द्वीप पर बने एक कारखाने में लामबंद किया गया था। उनके अनुसार, हालांकि अपने लामबंदी-स्थल की ओर जाते समय मियुकी पुल के पास अपने मित्रों के साथ उन्होंने खुद अणु-बमबारी का सामना किया था, लेकिन इसके बावजूद वे उस स्थान की ओर जाने के बजाय हम लोगों की चिंता के कारण पीछे मुड़े और वापस घर लौट आए। हिरोशिमा विद्युत रेल के मुख्यालय के आस-पास दोनों तरफ आग लगी होने के कारण सड़क पार कर पाना संभव नहीं था, इसलिए वे शुदो माध्यमिक विद्यालय की ओर आगे बढ़े, नाव से मोटोयासु व ओटा नदियां पार कीं, एक पुल पार किया और अंततः कानोन-माची पहुंचे। घर लौटते समय, हालांकि किसी ने उनसे एक किंडरगार्टन इमारत के मलबे के नीचे दबे एक अन्य व्यक्ति की सहायता करने का अनुरोध किया था, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सके। वे जल्दी में थे क्योंकि वे यथाशीघ्र यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि उनका परिवार सुरक्षित है। उन्होंने बताया कि उन्हें उन लोगों की स्थिति को देखकर दुःख हुआ था।
जब वे घर पहुंचे, तो लपटें लगभग हमारे घर तक पहुंचने लगी थीं। उन्होंने बाद में मुझे बताया कि पानी से भरी एक बाल्टी की मदद से उन्होंने तुरंत ही उन लपटों को बुझाया। इसके बाद यह देखने पर कि घर में कोई नहीं था, वे हमारी खोज में ओगावाची-माची की ओर बढ़े। आखिरकार हम लोग ओगावाची-माची में फिर एक साथ मिल पाने में सफल हुए।

मेरी मां के अनुसार, 6 तारीख को सुबह दीदी ने उनसे कहा कि वह स्कूल नहीं जाना चाहती। लेकिन मेरी मां ने इस आशा से उसे स्कूल भेजा ताकि आगे चलकर वह यामानाका कन्या हाईस्कूल में प्रवेश पा सके। रोज की तरह उस दिन भी मेरी मां ने दीदी को स्कूल छोड़ा, लेकिन दीदी कभी घर नहीं लौटी।

●7 तारीख के बाद की स्थिति
मेरे भैया अणु-बमबारी के अगले दिन मेरी दीदी, जो कि अभी तक घर नहीं लौटी थी, की खोज में तेन्मा प्राथमिक शाला गए। यह जानने पर कि अणु-बमबारी के समय वह प्राचार्य के कार्यालय की सफाई कर रही थी, भैया ने कार्यालय के आस-पास उसकी खोज की, लेकिन उन्हें मलबे में कुछ भी नहीं मिला। स्कूल की इमारत पूरी तरह ढह चुकी थी और सब-कुछ जलकर ख़ाक हो चुका था।

मेरी मां, भैया और मैं कुछ दिनों तक ओगावाची-माची की पनाहगाह में रहे। लेकिन मेरी मां मेरी बहन के लिए इतनी अधिक चिंतित थी कि हमने घर लौटने का फैसला किया।

हमारे घर लौटने के बाद से ही मेरी मां बीमारी के कारण बिस्तर पर ही थी। कोइ प्राइमरी स्कूल में उसके घावों पर लगाए गए मरहम के अलावा उसे कोई उपचार नहीं मिल सका था।

चूंकि सौभाग्य से हमारा घर आग से सुरक्षित बच गया था, इसलिए हमारे पड़ोसियों ने भी हमारे पूरे बिस्तर का उपयोग करना शुरु कर दिया था। इस स्थिति की जानकारी मिलने पर, मेरी चाची सुयेको ओमोया ने नाराज होकर हमसे कहा, "ये क्या बात है? तुम लोग सदभावनापूर्वक अपना बिस्तर दूसरे लोगों को दे देते हो और अपनी मां को कुछ नहीं ओढ़ाते, ऐसा क्यों"? चूंकि मेरा भाई एक औद्योगिक विद्यालय में केवल द्वितीय वर्ष का एक छात्र था और मैं एक प्राइमरी स्कूल में केवल तीसरे वर्ष की छात्रा थी, जिनका संयोजन मिलकर आज केवल एक जूनियर हाई स्कूल के विद्यार्थी और एलीमेंट्री स्कूल के विद्यार्थी के बराबर होगा, इसलिए वास्तव में हम इस समस्या से अच्छी तरह निपटने के लिए कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं थे। जब मेरी चाची हमारे घर आई, तो उन्होंने ही मेरी मां की और हमारी देखभाल की। मेरी चाची के घर में, उनके पति, मेरे पिता के छोटे भाई, शीगेओ जो कि यामागुची में एक सैन्य टुकड़ी में तैनात किए गए थे, अणु-बमबारी के दो दिनों बाद ही इसलिए हिरोशिमा के अपने घर लौटे क्योंकि उनकी पत्नी और पुत्री नोब्यु हिरोशिमा में थे। यदि मेरे चाचा और चाची न होते तो केवल बच्चों और बीमार मां के हमारे परिवार को बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ता।

हालांकि मेरी मां इस बात से खुश थी कि उनके जले हुए चेहरे के घाव जल्दी ही ठीक हो गए थे, लेकिन गंभीर रूप से जल चुकी उनकी पीठ के घाव ठीक होने वाले नहीं थे। अचानक उनकी पीठ की त्वचा पूरी तरह उतर गई, जबकि मैं ये समझ रही थी कि घाव ठीक हो रहे हैं क्योंकि त्वचा सूख रही थी। उनकी त्वचा के नीचे कीड़ों का झुण्ड लगा हुआ था। जब तक मैं यह बात जान पाती, उससे पहले ही इन कीड़ों के झुण्ड वहां बड़ी संख्या में जमा हो चुके थे और मेरी मां की पीठ इन कीड़ों से पूरी तरह भर चुकी थी। उन्हें पू्री तरह निकाल फेंकना असंभव था। जब मेरे भाई ने और मैंने अपनी मां के पास सोना शुरू किया, जो कि एक मच्छरदानी के भीतर सोया करती थी, तो मैं उन कीड़ों की तेज गंध को नजरअंदाज नहीं कर पाती थी।

अपनी गंभीर चोटों के बावजूद, मेरी मां ने कभी ये नहीं कहा कि" यह दर्दनाक है", या" मुझे बहुत खुजली हो रही है", और न ही वे कभी पानी के लिए तरसीं। चूंकि वे हमेशा प्रार्थना किया करतीं थीं कि" मैं आडू खाना चाहती हूं। मैं आडू खाना चाहती हूं"।, इसलिए मेरी चाची कुछ आडू खरीदने इगुची गई। मेरा अनुमान है कि वह अवश्य ही बहुत प्यासी रही होंगी।

4 सितंबर की सुबह, मेरी मां चल बसी। मुझे मां की मौत का अहसास तब हुआ, जब चाची ने मुझे बताया," हिरोको !तुम्हारी मां की मौत हो चुकी है"। तब तक मुझे और भैया को सचमुच ही इस बात का अहसास नहीं हुआ था। पीछे मुड़कर देखने पर, मुझे आश्चर्य होता है कि सिर फूट जाने के कारण लगी गंभीर चोट के बावजूद भी वो एक माह तक कैसे जीवित बची रह सकी। जब घायलों को हटाने के लिए सैनिक उन्हें एक ट्रक में भर रहे थे, तब मेरी मां ने किसी भी हाल में तब तक घर छोड़ने से मना कर दिया, जब तक कि उन्हें ये पता न चल जाए कि मेरी दीदी कहां थी। एक व्यक्ति को मेरी मां की तरह ही गंभीर जख्म हुए थे और उपनगरों में हुए उपचार के बाद वह ठीक हो गया। मेरी लापता दीदी के लिए चिंतित मेरी मां केवल इस आशा पर जीती रही कि वह दीदी को फिर एक बार देख सकेगी।

मां की मृत्यु के दिन ही हमने कोसीकान के श्मशान घाट में उनका अंतिम संस्कार किया। लेकिन मेरे मन में दुःख की कोई भावना या आंसू नहीं उमड़े। शायद मेरी भावनाएं पहले ही सुन्न हो चुकी थीं। उस दिन वर्षा हो रही थी, और मेरी मां का शरीर इतनी जल्दी जलकर राख में नहीं बदलने वाला था।

शहर में इमारतें ढह गईं थीं और पूरा क्षेत्र एक जला हुआ मैदान बन गया था। अपने घर से हम हिरोशिमा स्टेशन और निनोशिमा को देख सकते थे। हर तरफ लाशें बिखरी हुई थीं। सैनिकों ने नदी में बह रही लाशों को निकालकर उनका अंतिम संस्कार किया। हालांकि कुछ लाशें एक माह से भी अधिक समय तक जमीन पर ही पड़ी रहीं, लेकिन वहां से गुजरते समय हम पर इस बात का ज़्यादा असर नहीं पड़ता था। चूंकि हमें अणु-बम के बारे में कुछ भी नहीं मालूम था और उन दिनों हमारे पास खाने को कुछ भी नहीं था, इसलिए हम विकिरण से दूषित खाद्य पदार्थ, जैसे दूसरों के खेतों में उगे आलू या प्रदूषित मिट्टी के नीचे दबा चावल बेझिझक खा लिया करते थे।

●अणु-बमबारी के बाद जीवन
मां की मौत के कुछ ही समय बाद हम लोग मिडोरी गांव की ओर चले गए, जहां हम अपने रिश्तेदारों पर आश्रित होकर रह सकते थे और हमने उनसे प्रार्थना की कि वे हमें अपने बाड़े में रहने दें। हमारे दादा-दादी पहले ही वहां आ चुके थे। अणु-बमबारी के समय, हमारे दादाजी तोमेकिची ओमोया और दादी मात्सुनो अपने घर के बैठक कक्ष में सुरक्षित थे। हालांकि, मिडोरी गांव में आने के बाद, हमारे स्वस्थ और सक्रिय दादाजी अचानक अस्वस्थ महसूस करने लगे और मां की मौत के पांच दिनों बाद ही उनकी मृत्यु हो गई। हमें अपने चाचा शोसो की कोई खबर नहीं मिली, जो कि हाइरोस-मोटोमाची में हमारे दादा-दादी के साथ रहा करते थे, जिन्होंने बताया था कि अणु-बमबारी के समय चाचाजी दरवाजे पर थे।

मिडोरी गांव में हम ऐसी कई बातों के चलते परेशान थे, जो कि हमारे जीवन के अब तक के अनुभवों से काफी अलग थीं। लगभग एक साल तक मिडोरी गांव के विद्यालय में जाने के बाद हम हिरोसे लौट आए। हम सभी ने मिलकर कुछ जमीन समतल की और एक झोपड़ी बनाकर रहने लगे। हमारे चाचाजी और चाची ने माता-पिता की तरह ही मेरा व मेरे भाई का पालन किया। इस तरह अपने माता-पिता की मौत के बाद भी मैंने खुद को कभी अकेला महसूस नहीं किया।

हालांकि, उम्र बढ़ते जाने पर मैं अपने माता-पिता की कमी महसूस करने लगी। जब मैं अपनी चचेरी बहन, जिसके साथ मेरा लालन-पालन किसी सगी बहन की तरह ही हुआ था, को प्राथमिक शाला से ही एक निजी शिक्षक से पढ़ते हुए देखती, तो मुझे उससे ईर्ष्या होती थी और मैं खुद को कुछ अकेला महसूस करती थी। अपनी शादी तक मैं चाचाजी के परिवार के साथ ही रही। चूंकि मेरे चाचाजी फर्नीचर के उत्पादक थे, इसलिए मैं वहां बही-खाते संभालने का काम किया करती थी।

●विवाह और बीमारी
उन दिनों, बहुत से लोग अणु-बम पीड़ित होने की बात को छिपाया करते थे। विशेषतः कई महिलाएं अणु-बम पीड़ितों की विवरण-पुस्तिकाओं के लिए भी आवेदन नहीं किया करती थीं, और इस तथ्य को छिपाती थीं कि वे अणु-बम पीड़ित हैं, ताकि उनका विवाह आसानी से हो सके। हालांकि आज मैं इस विवरण-पुस्तिका के लिए आभारी हूं, लेकिन मुझे भी इसके लिए आवेदन करने में कुछ समय लगा था। विवाह के बारे में, मेरा मानना था कि मैं उस व्यक्ति से शादी करूंगी, जिसे मेरी चाची और चाचाजी मेरे लिए चुनेंगे। अंततः मेरा विवाह पारंपरिक पद्धति से हुआ। सौभाग्य से मेरे पति को इस बात की चिंता नहीं थी कि मैं एक अणु-बम पीड़ित हूं।

विवाह के बाद मैं अपने होने वाले बच्चों के बारे में सोचकर चिंतित थी। मैं गले के कैंसर से पीड़ित हूं। मेरे भैया और चचेरी बहन भी कैंसर से पीड़ित हैं। मेरी बेटी श्रवण-नाड़ी के ट्युमर से ग्रस्त है। मैं नहीं जानती कि क्या मेरी बेटी की बीमारी को अणु-बमबारी से जोड़कर देखा जा सकता है।

●शांति की कामना
मैं अक्सर अपने बच्चों को अणु-बमबारी की अपनी कहानी सुनाती हूं। मैं उन्हें शांति स्मारक संग्रहालय (Peace Memorial Museum) भी ले गई और उन्हें अणु-बमबारी के समय की परिस्थिति के बारे में बताया।

हालांकि उन दिनों मैं इतनी अधिक व्यस्त थी कि मैं अपने परिवार के समाधि-स्थल पर भी नहीं जा पाती थी, लेकिन अब मैं अक्सर वहां जाती हूं और घर लौटने से पहले वहां मौजूद अन्य लोगों से कुछ देर बात भी करती हूं। यदि मेरी मां जीवित होती तो मैं उसे खुश करने की कोशिशें करतीं और यह बताती कि मुझे उसकी कितनी चिंता है। इसलिए जब भी मैं अपनी मां की उम्र के किसी व्यक्ति से मिलती हूं, तो उनके लिए कुछ न कुछ ऐसा करने से खुद को रोक नहीं पाती हूं, जैसा कि मैंने अपनी मां के लिए किया होता।

अणु-बमबारी के शिकार हुए लोगों की बड़ी संख्या को देखते हुए मैं अपने स्वास्थ्य की वर्तमान स्थिति के लिए सचमुच आभारी हूं। साथ ही, जब भी अपनी मां को याद करती हूं तो सोचती हूं कि मुझे अपने बच्चों के लिए एक लंबा और सशक्त जीवन जीना है।

 
 

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