●उन दिनों की जिंदगी
उन दिनों, मैं 31 साल का था और कोमाची में चुगोकू हाइदेन कॉर्पोरेशन (वर्तमान में चूगोकू इलेक्ट्रिक पावर कंपनी) में काम करता था। मैं ओटेमाची में अपनी पत्नी मिकी और दो बच्चों (तीन साल का बेटा और सात महीने की बेटी) के साथ किराए के मकान में रहता था। ओनोमिचि मिडिल स्कूल से ग्रेजुएट करने के बाद मैंने चुगोकू हाइदेन में नौकरी शुरू की और मुझे फरवरी 1934 में ड्राइविंग लायसेंस मिल गया, मैं तब 20 या 21 साल का था। जब मैं चुगोकू हाइदेन में था, तब मुझे दो बार नियुक्त किया गया था। पहली बार सितंबर 1937 से जनवरी 1941 तक और दूसरी बार सितंबर 1942 से नवंबर 1943 तक। पहली बार मेरी नियुक्ति ड्राफ्टी के रूप में और अगली बार कर्मचारी के रूप में हुई।
मार्च 1945 के अंतिम दिनों में हुई भयानक बमबारी के बाद, मैंने लड़ाकू विमानों को पतंगों के झुंड की तरह उड़ते हुए देखा। वहां पर जमीन के नीचे एक हवाई-छापामार स्थान था। जो शायद पहले वहां रहने वालों ने खोदा होगा। जब भी हवाई-छापामारी होती थी, मैं उस बंकर में छिप जाता था। लेकिन अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ इस स्थिति का सामना करना मुश्किल होता था। एक बच्चे पर ध्यान दो, तो दूसरा बंकर से निकलने की कोशिश करने लगता था। मैंने निर्णय लिया कि ऐसे और नहीं चलेगा और मार्च के अंत में अपनी पत्नी और बच्चों को अपनी पत्नी के माता-पिता के घर फुतामी के वादा शहर के मुकोएता प्रांत में भेज दिया, (जो आज मुकोएता-माची, मियोशी कहलाता है)। चूंकि उस समय युद्ध जारी था, इसलिए मैंने अपने घर का सारा सामान अपनी कंपनी के गोदाम में रख दिया था और परिवार को बिना सामान के ही भेजा था।
घर खाली करने के बाद मैं अस्थाई रूप से गोदाम में रहने लगा। लेकिन मई की शुरुआत में जब मैं अपनी पत्नी के माता-पिता के घर से दो दिन की छुट्टी के बाद लौटा, तो मैंने पाया कि गोदाम पर हुई बमबारी के कारण मेरा सारा सामान जलकर राख हो चुका था। मेरे पास बदलने के लिए कपड़े भी नहीं थे इसलिए मैं अपनी पत्नी के पास वादा शहर गया। उसने मुझे युकाता से पैंट और शर्ट बनाकर दी। चूंकि मेरा अस्थाई निवास नष्ट हो चुका था, इसलिए मैंने अपने सहकर्मी के जरिए उशिता-माची में एक मकान किराए पर लिया और अणु बमबारी तक वहां रहा।
●अणु बमबारी के समय की स्थिति
उन दिनों जब रात में रेड अलर्ट जारी किया जाता था, तब मुझे म्युनिसिपल ऑफिस के आदेशानुसार काम के कपड़ों में रात की निगरानी पर तैनात रहना पड़ता था। इस आदेश को "कॉल्स फॉर गार्ड्स" कहा जाता था। यह ड्यूटी भूतपूर्व सैनिकों को दी गई थी। 5 अगस्त की रात को जब रेड अलर्ट जारी किया गया, तब मैं रात की निगरानी पर अपनी नियुक्ति के स्थान यानागि पुल गया था। सामान्यत: रात की निगरानी के दूसरे दिन का काम सुबह आधा घंटे देरी से शुरू होता था, लेकिन उस दिन मुझे देरी से काम शुरू होने की कोई सूचना नहीं मिली। इसलिए मैं 6 अगस्त को सुबह 8 बजे कंपनी के दफ्तर पहुंचा, जिसे मैं रात की निगरानी वाले दिन के बाद से अपने ज़िंदा होने के लिए जिम्मेदार मानता हूं।
काम शुरू करने से पहले मेरे पास आधा घंटा था, इसलिए मैं स्टाफ के लोगों के लिए अलग से बनाए गए भूमिगत बाथरूम में जाकर रात की निगरानी के दौरान पहने गए कपड़े धोने लगा। जैसे ही मैं कपड़े धोने के लिए झुका, एक विस्फोट के प्रहार से पीछे की ओर धकेल दिया गया जो एक आग के गोले की तरह मेरे सामने से आया था और फिर पीछे की दीवार से टकराकर बेहोश हो गया। मुझे उस आग के गोले के अलावा कुछ भी याद नहीं है। जब मैं होश में आया, तो सबकुछ धूलमय हो गया था, कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। लेकिन जब मैंने चौथी और पांचवी मंजिल पर आग की लपटे देखीं तो मुझे लगा कि कुछ करना चाहिए। मैं अपनी नाक के आगे कुछ भी नहीं देख पा रहा था, मैंने अंधेरे में अपनी याद्दाश्त की मदद से रास्ता टटोला। कई बार मैं आगे जाते हुए चीज़ों से टकराया, अंदाज़ा लगाते हुए कि शायद वहां सीढ़ियां हों, अंतत: मैं सुरक्षा गार्ड के ऑफिस तक पहुंचा। वहां से मैं ट्रा़म स्ट्रीट देख पा रहा था। जब मैं वहां पहुंचा तो देखा कि एक ट्राम कार एक घर के ऊपर गिरी पड़ी है। तब मैंने सोचा कि जरूर कोई गंभीर मामला है। वहां मुझे यह बताने के लिए कोई नहीं था कि मैं कहां जाऊं।
हालांकि, हिरोशिमा प्रांत के हिरोशिमा फर्स्ट मिडिल स्कूल में, जो मेरी कंपनी के दक्षिण में था, हमारे रहने की व्यवस्था की गई थी, लेकिन मुझे इस बारे में पता नहीं था। मैं ट्राम स्ट्रीट पर उत्तर की ओर आगे बढ़ा, शिराकामिशा मंदिर के ठीक पहले दाईं ओर मुड़ा और फिर ताकीया-चो सड़क पर पूर्व में जाने लगा। मेरे रास्ते में मुझे हिरोशिमा प्रांत के हिरोशिमा फर्स्ट वुमेंस हाई स्कूल में एक औरत (अज्ञात आयु) दिखाई दी। वो विस्फोट के कारण नष्ट हुई चारदीवारी के नीचे दब गई थी। वो मदद के लिए चिल्ला रही थी। उसका केवल सिर ही दिखाई दे रहा था। दुर्भाग्यवश, मैं ही बड़ी मुश्किल से उस आपदा से बच पाया था, मेरी पीठ में कांच के टुकड़े चुभ जाने के कारण वहां से खून निकल रहा था इसलिए मैं उसकी कोई मदद नहीं कर पाया और वहां से निकल गया।
उसके बाद मैं ताकिया नदी के पास से होते हुए मियूकि ब्रिज की ओर दक्षिण में बढ़ा। ताकिया नदी एक छोटे नाले की तरह थी और हिरोशिमा के नक्शे में कहीं भी दिखाई नहीं देती थी। वह फुकुया के नीचे से बहती थी। चूंकि मैं बचकर भाग रहा था, इसलिए मैंने भागते हुए और लोगों को नहीं देखा। ताकिया नदी के उस पार बने घरों में रहने वाले लोग मलबा हटाते हुए कह रहे थे, "यह वाकई बहुत गंभीर है"। मुझे पता नहीं था कि उस वक्त घड़ी में कितने बज रहे थे, लेकिन काफी समय गुजर गया था।
मियूकि ब्रिज पार करने से पहले एक सैनिक ट्रक मेरे करीब आया। ड्राइवर ने मुझे उजीना बंदरगाह तक पहुंचाया। वहां से मैं जहाज़ से निनोशिमा आइलैंड पहुंचा। आइलैंड पर स्थिति ठीक नहीं थी क्योंकि कई घायलों ने वहां शरण ली हुई थी। वहां कुछ चिकित्सक थे, लेकिन मुझे कोई अच्छा इलाज नहीं मिल पाया। कांच के टुकड़े अभी भी मेरी पीठ में चुभे हुए थे। लोगों के शोर के कारण मैं सो नहीं सका। वे पागलों की तरह चिल्ला रहे थे। जब रात में सब सोते थे, तब भी कुछ लोग भागते रहते थे तो लोग उन्हें डांटते थे। मैंने 6 अगस्त को कुछ नहीं खाया। 7 अगस्त की सुबह मुझे एक बांस के डिब्बे में थोड़ा दलिया और साथ में अचार दिया गया। निनोशिमा में खाने के लिए सिर्फ यही था।
आइलैंड में स्थिति ऐसी थी कि मैंने मरने के डर से एक सैनिक से कहा कि मुझे वापस अपने घर जाने दिया जाए और मैं 7 अगस्त को जहाज से वापस उजीना बंदरगाह आ गया। सौभाग्य से मुझे एक ट्रक दिखाई दिया, मैंने उसके ड्राइवर से पूछा कि वो कहां जा रहा है। वो सिटी हॉल की तरफ जा रहा था। मैंने उससे मुझे वहां तक छोड़ने के लिए कहा और वो मान गया। उसने मुझे सामने के प्रवेश द्वार पर छोड़ा। मैं उसे धन्यवाद देकर उतर गया। मेरी कंपनी सिटी हॉल के उत्तर में थोड़ी दूरी पर ही थी। मैं वहां तक पैदल गया। जब मैं अपनी कंपनी में पहुंचा, तो वहां रिसेप्शन डेस्क पर दो कर्मचारी थे। मैंने उनसे कहा, "अब मैं अपनी पत्नी के माता-पिता के घर, मियोशी जाना चाहता हूं" और उन्हें वहां का पता दिया। उसके बाद मैं कमिया-चो और हाछोबोरी होता हुआ उशिता शहर में बोर्डिंग हाउस पहुंचा। मैं वहां रात भर रुका और 8 अगस्त को हेसाका स्टेशन से वादा शहर के लिए ट्रैन पकड़ी जहां मैंने अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़ा था। मैं जल्दी-जल्दी अपनी पत्नी के माता-पिता के घर पहुंचा। मैं सोच रहा था कि वो मेरे बारे में चिंतित होगी। रास्ते में क्या हो रहा था, यह तो मुझे याद नहीं, सिर्फ कोहेई पुल पर लाशों के उस ढेर की गहरी छाप अभी तक मेरे दिमाग में है।
●अणु बमबारी के बाद की स्थिति
जब मैं वादा शहर में आया तो कांच के टुकड़े अभी भी मेरी पीठ में चुभे हुए थे। मेरी पत्नी रोज नदी पर मेरी पीठ को धोया करती थी। मेरी पीठ पर खून जमा हो गया था और वो कोलतार की तरह मेरी पीठ से चिपक गया था। जब मेरी पत्नी सुई से खून के थक्के निकालती थी, तो कांच के टुकड़े खून के थक्कों के साथ निकलते थे। उसने एक सप्ताह या शायद दस दिनों तक मेरी पीठ से खून के थक्के और कांच के टुकड़े निकाले। मुझे लगा कि वे सारे निकल गए हैं, लेकिन मेरी पीठ में बचे हुए कांच के टुकड़ों के साथ मवाद बाकी था, जिसका अनुभव मुझे तीस सालों तक होता रहा। मैं कांच के सभी टुकड़ों को निकलवाने के लिए सकाई-माची के सर्जिकल हॉस्पिटल में गया।
वाडा शहर आने के कुछ दिनों बाद मेरे पिताजी ओनोमिची से मुझे देखने आए थे। चूंकि अणु-बमबारी के कारण मैं अपने परिजनों से संपर्क नहीं कर पाया था, तो मेरे पिता को लगा कि शायद मैं मर चुका हूं और इसलिए वो यह जानने वादा आए थे कि मेरा अंतिम संस्कार कहां किया गया है। जब उन्हें पता चला कि मैं जिंदा हूं, तो वे बहुत आश्चर्यचकित हुए और खुश भी। वे जल्दी ही सिर्फ चाय पीकर वापस ओनोमिची चले गए।
वाडा शहर में, मैं अपने अंगों में बिना किसी असामान्य लक्षण के अच्छा महसूस कर रहा था। तीन हफ्ते के आराम के बाद मैं अगस्त के अंत या सितंबर की शुरुआत में वापस हिरोशिमा लौटा और काम पर गया।
काम पर वापस आने के कुछ समय बाद मेरी आंत से खून आने लगा। वह सितंबर माह के बीच का समय था क्योंकि मुझे याद है कि उस समय पेड़ों से अखरोट गिरने लगे थे। मैं ओनोमिची में अपने माता-पिता के घर गया और वहां मेरी देखभाल हुई। मेरी स्थिति को देखते हुए सभी को, यहां तक कि मेरे डॉक्टर को भी, लगा कि मुझे पेचिश हुआ है, वे सोच रहे थे कि अन्य लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए मुझे दूर रखा जाना चाहिए। लेकिन मेरी बहन के बनाए हुए अखरोट के चावल खाकर मेरा खून आना बंद हो गया। यह एक चमत्कार की तरह था, लेकिन मेरा विश्वास है कि मेरी बहन के बनाए हुए अखरोट के चावल मेरी बीमारी के लिए अनुकूल आहार साबित हुए। ओनोमिची में कई दिनों के अच्छे आराम और खान-पान के बाद मेरे पेट की स्थिति सामान्य हो गई। इसलिए मैं वापस हिरोशिमा अपने काम पर लौट गया।
●युद्ध समाप्त होने के बाद की जिंदगी
जब मैं काम पर वापस आया तो मेरे स्टाफ के कई लोग ऐसे थे, जिनके घर नष्ट हो गए थे। मैं इन लोगों के साथ कंपनी की पांचवी मंजिल पर रह रहा था। पहले हमें अपने खाने का इंतजाम खुद करना पड़ता था, लेकिन बाद में कंपनी ने हमारे लिए रसोइया रखवा दिया था।
चूंकि मैं ड्राइव कर सकता था, इसलिए मुझे सामान्य मामलों के सामग्री विभाग के ट्रक ड्राइवर के रूप में रखा गया था और मैं हिरोशिमा प्रांत के सभी विद्युत संयंत्रों सामाग्री पहुंचाता था।
1946 में मेरा परिवार वापस हिरोशिमा आ गया और मेरे साथ रहने लगा। अपना काम खत्म करने के बाद मेरे सहकर्मी मेरे लिए एनोमाची में एक घर बनाने का काम किया करते थे। उसके बाद एनोमाची में हम 30 साल रहे।
कई समस्याओं के बावजूद हमें खाना मिल जाता था। मेरी पत्नी के माता-पिता भी कुछ मदद करते थे। लेकिन हमारे पास कपड़े और बिस्तर नहीं थे क्योंकि वो मेरी कंपनी के गोदाम में जलकर नष्ट हो गए थे। हमने सब कुछ फिर से शुरू किया, लेकिन हम पूरी तरह से लोगों की दया पर ही जिंदा थे। मैंने कपड़े युकाता से खुद बनाए और बिस्तर ओनोमिची में अपने माता-पिता के यहां से मंगवाए थे।
●स्वास्थ्य
जुलाई 1947 में, हमारी दूसरी बेटी का जन्म हुआ। फिर से मुझे चिंता हुई कि कहीं वो अणु-बमबारी से प्रभावित तो नहीं है। मैं कई बार उसकी नाक से खून बहते हुए या और भी कुछ अलग देखता था, जो उसकी उम्र के अन्य बच्चों से अलग था। इसका कारण मुझे लगा कि उस पर भी अणु बमबारी का प्रभाव है।
1956 में मुझे पता चला कि मुझे ट्यूबरक्यूलोमा हुआ है, जो एक तरह का ट्यूमर होता है। मेरे शरीर में सफेद कोशिकाओं की संख्या घटकर 2000 और फिर 1000 हो गई थी, जो निम्नतर स्तर होता है। मेरा वजन आठ किलो कम हो गया। पहले मेरा वजन 65 किलो था। जुलाई 1956 से सितंबर 1957 तक मैं हारा, हात्सुकाइची-माची (वर्तमान में हात्सुकाइची शहर) के एक अस्पताल में भर्ती था और 2 सालों तक मैं काम से भी दूर रहा। 7 जुलाई को जब मैं अस्पताल में भर्ती हुआ, उस दिन तानाबाता त्योहार भी था। मेरी बेटी ने उस दिन सुबह मुझसे नाश्ते के समय कहा कि "आज आसमान में दो तारे मिलने वाले हैं, लेकिन वो अलग भी हो जाएंगे"। यह सुनकर हम सब रोने लगे।
उसके बाद से, मैं स्वस्थ रूप से जीता रहा और अगले 10 सालों तक मुझे कोई गंभीर बीमारी नहीं हुई। बहुत साल पहले मुझे फिर से वही रक्त-स्राव शुरू हुआ। जब-जब मुझे इसके लक्षण दिखाई देते थे, तब-तब मैं रक्त-स्राव बंद होने तक रेड क्रॉस हॉस्पिटल में भर्ती रहता था।
चार साल पहले जब मेरी प्रोस्टैट कैंसर की सर्जरी हुई, तब मुझे अणु-बम का शिकार व्यक्ति होने संबंधी एक प्रमाणपत्र मिला।
●वर्तमान विचार
मैं अभी 94 वर्ष का हूं, और मैं इस बात के लिए शुक्रगुज़ार हूं कि मैं इतने लंबे समय तक जी सका। मैं आज जो कुछ भी हूं, उसके लिए मैं अपनी पत्नी का एहसानमंद हूं। मेरे बच्चों का व्यवहार मेरे प्रति बहुत अच्छा है। मेरे पास उन सभी लागों को धन्यवाद देने के लिए शब्द नहीं हैं जिन्होंने मेरे लिए इतना कुछ किया।
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